शक्ति उपासन के महापर्व वासंतिक नवरात्र के कारण जिले के 80 से 90 फीसदी बकरों और मुर्गों की जान बच गई है। नवरात्र में बकरे और मुर्गे के मीट की बिक्री में भारी गिरावट आ गई है। मीट की बिक्री नहीं के बराबर हो रही है। इससे पोल्ट्री फार्म में मुर्गे मानक से अधिक मात्रा में हो गए हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार, सात्विक पूजा को सर्वोत्तम माना जाता है। अगर किसी को पूजन को श्रेष्ठ फल प्राप्त करना हो तो सात्विक पूजा की जाती है। इसके लिए सात्विक आहार की आवश्यकता है। मांस सात्विक भोजन की श्रेणी में नहीं आता है। ऐसे में लोग पूजन से श्रेष्ठ फल की प्राप्ति के लिए नवरात्र में मांस से दूरी बना लेते हैं। जिसका सीधा असर मांस के बाजार पर पड़ता है।
मंगलवार को शहर के मांस की दुकानों के साथ ही मांसाहारी रेस्टोरेंटों में भी सन्नाटा पसरा रहा। घोषकंपनी, छोटे काजीपुर, मियां बाजार, शाहमारूफ, घंटाघर, धरमपुर स्थित मांस की अधिकतर दुकानें बिक्री नहीं होने के वजह से बंद रहीं। वहीं गोलघर की अधिकतर दुकानों पर एक-दो ग्राहक ही नजर आए।
सामान्य दिनों में 60 से 70 क्विंटल मुर्गे और 20 से 25 क्विंटल बकरे के मीट की बिक्री शहर में हो जाती थी, तो वहीं नवरात्र के दौरान मुर्गे का मीट 10 से 15 क्विंटल ही बिक रहा है। रमजान के कारण मुर्गे के मीट की थोड़ी बिक्री हो भी जा रही है, लेकिन बकरे के मीट की बिक्री नहीं के बराबर है। इससे दुकानदार परेशान हैं। वहीं पोल्ट्री फार्म में भी मुर्गे क्षमता से अधिक हो गए है। इससे फार्म संचालक परेशान हैं।