काला कहा जाने वाला कुफरी नीलकंठ आलू अब भीतर से लाल दिखेगा। इसके लिए चल रहा शोध पूरा हो गया है और जल्द ही इस प्रजाति का नामकरण होगा। नीलकंठ की बढ़ती मांग को देखते हुए नए बोआई सत्र में सरकार भी इसका बीज बेचने की तैयारी कर रही है। इस आलू को बीज के लिए कुशीनगर से मंगाकर भंडारित किया जा रहा है। मंशा है कि जब तक नई प्रजाति आए, विभिन्न जिलों में इसका प्रचार बढ़ जाए, ताकि किसानों को इससे खूब आय हो।
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला ने वर्ष 2015 में कुफरी नीलकंठ आलू की प्रजाति विकसित की थी, इसकी बोआई वर्ष 2018 से शुरू हुई थी। बाहर से बैंगनी या नीला दिखने वाले इस आलू का गूदा क्रीमी या सफेद रंग का होता है। प्रदेश में इस आलू की खेती विभिन्न जिलों में हो रही है। हालांकि अभी बाजार में खाने के लिए यह आलू कम मिलता है, क्योंकि किसान बीज के लिए ही आलू पैदा कर रहे हैं। इसे बीज के रूप में ही बेचने से इसका अच्छा दाम मिल रहा है। 3000 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल के दाम में इसका बीज आसानी से बिक रहा है।
प्रदेश में आगरा, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, कुशीनगर, अलीगढ़ समेत विभिन्न जिलों में इसकी खेती हो रही है। निदेशक उद्यान डॉ. आरके तोमर के मुताबिक आगरा में दो व तीन अप्रैल को होने जा रहे वैश्विक आलू क्रेता-विक्रेता सम्मेलन में भी नीलकंठ को स्थान दिया जाएगा। इसकी खेती करने वाले किसानों को आमंत्रित किया जा रहा है, ताकि वे इसका बेहतर ढंग से प्रदर्शन कर सकें।
बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता, पकने पर आती है बासमती सी खुशबू
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान मेरठ के अधीक्षक डॉ. देवेंद्र कुमार ने बताया कि कुफरी नीलकंठ आलू में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व हैं। इसमें कैरोटिन एंथोसाइनिन नामक तत्व होता है, जिसके कारण यह शरीर में फ्री रेडिकल्स (अत्यधिक प्रतिक्रियाशील अणु) को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जब यह आलू पकाया जाता है, इसमें बासमती की तरह खुशबू आती है। इसकी ऐसी किस्म भी विकसित कर ली गई है, जिसका भीतर से गूदा लाल या अन्य गहरे रंग का होगा। इसका नया नामकरण होना बाकी है।
एक हेक्टेयर में 400 क्विंटल से अधिक है उत्पादन
अलीगढ़ में एफपीओ में नीलकंठ की खेती कर रहे किसान राजेंद्र प्रसाद पचौरी ने बताया कि इस आलू का परिणाम बहुत अच्छा है, कीमत भी अच्छी मिल रही है। हम एनसीआर में जाकर इस आलू को बेचते हैं, जहां अच्छा मुनाफा होता है। ये आलू गुणों से भरपूर है, उत्पादन भी बेहतर है। किसानों के लिए ये सोना है। जहां सामान्य आलू का उत्पादन 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है, वहीं नीलकंठ का उत्पादन 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। अब जरूरी यह है कि सरकार इसका बीज बांटे और ज्यादा से ज्यादा इसका प्रचार करे।