नेटफ्लिक्स की आगामी फिल्म ‘इंस्पेक्टर जेंडे’ में मनोज बाजपेयी एक ऐसे जांबाज पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं, जिसने असली जिंदगी में भारत के सबसे शातिर अपराधियों में से एक को दो बार सलाखों के पीछे पहुंचाया। यह फिल्म मधुकर जेंडे की जिंदगी से प्रेरित है, जिनकी गिनती देश के सबसे बहादुर और रणनीतिक पुलिस अधिकारियों में होती है। फिल्म को चिन्मय मंडलेकर ने लिखा और निर्देशित किया है। मधुकर जेंडे ने लगभग 30 वर्षों तक मुंबई पुलिस सेवा में काम किया और उन्हें कुख्यात अपराधी चार्ल्स शोभराज को दो बार पकड़ने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
पहली गिरफ्तारी: एकदम फिल्मी अंदाज
चार्ल्स शोभराज को उसकी चालाकी, धोखाधड़ी, डकैतियों और हत्याओं के लिए दुनियाभर में ‘द सर्पेंट’ और ‘स्विमसूट किलर’ कहा जाता था। वह कई देशों की पुलिस को चकमा देकर भाग चुका था और एक बार तो दिल्ली की तिहाड़ जेल से भी भाग निकला था। एक यूट्यूब इंटरव्यू में जेंडे ने बताया कि 1971 में उनकी पहली मुलाकात शोभराज से तब हुई जब वह मुंबई में एक बड़ी डकैती की योजना बना रहा था। शोभराज ताज होटल में रुका था जबकि उसके साथी अन्य होटलों में। जेंडे और उनकी टीम ने कई दिनों तक ताज होटल के बाहर निगरानी रखी। जैसे ही उन्होंने सूट पहने शोभराज को देखा, उन्होंने उसे तुरंत गिरफ्तार किया।
उसके पास एक हथियार और कई होटलों की रसीदें थीं, जिनसे पुलिस को गिरोह के बाकी सदस्यों और हथियारों के जखीरे का पता चला। जेंडे के मुताबिक, ‘वो कुछ बड़ी योजना बना रहा था।’ हालांकि, बाद में शोभराज तिहाड़ जेल से भाग गया। जेल अधिकारियों को उसने अपने जन्मदिन पर नशीली मिठाई खिलाकर बेहोश कर दिया और फरार हो गया।
दूसरी गिरफ्तारी: सूझ-बूझ और बहादुरी का प्रदर्शन
कुछ समय बाद जब शोभराज के भारत लौटने की सूचना मिली तो फिर से जेंडे को केस सौंपा गया। उन्हें मामूली संसाधनों और छोटी टीम के साथ गोवा भेजा गया। वहां उन्होंने एक अनोखी योजना बनाई। वह शोभराज के नकली भाई बनकर तलाश का नाटक करने लगे, जो एक मोटरसाइकिल पर घूमता था। जेंडे जानते थे कि यह बाइक शोभराज इस्तेमाल करता है। आखिर में एक कैफे में उन्होंने टोपी पहने और डफल बैग लिए एक व्यक्ति को देखा। जेंडे को अंदाजा हो गया कि वह चार्ल्स है। उन्होंने तुरंत चिल्लाते हुए चार्ल्स कहा और उसे पकड़ लिया। उनके साथी ने उसका बैग छीना और रिवॉल्वर निकाली। चूंकि उनके पास हथकड़ी नहीं थी तो उन्होंने कैफे कर्मचारियों से रस्सी मांगकर उसे बांध दिया। मुंबई लौटते वक्त जेंडे ने शोभराज की निगरानी के लिए दो पुलिसकर्मी उसके ऊपर बैठा दिए ताकि वह फिर भाग न सके।
राष्ट्रीय पहचान और अन्य केस
शोभराज की गिरफ्तारी के बाद जेंडे घर-घर में मशहूर हो गए। उन्हें लता मंगेशकर ने अपने घर बुलाकर बधाई दी और वे अमूल के एक विज्ञापन में भी नजर आए। उनका करियर बहादुरी की कई कहानियों से भरा रहा, चाहे वह किसी कांस्टेबल को चाकू हमले से बचाना हो या हाजी मस्तान जैसे माफियाओं को गिरफ्तार करना। दिलचस्प बात यह रही कि शोभराज की पहली गिरफ्तारी जेंडे के दयालु स्वभाव के चलते ही संभव हो पाई, जब एक सुधरे हुए अपराधी ने उन्हें सूचना दी थी। जेंडे ने कभी अपने कार्यों के लिए इनाम नहीं मांगा, फिर भी उन्हें शोभराज को पकड़ने के लिए 15000 रुपये का इनाम दिया गया, जिसे उन्होंने विनम्रता से स्वीकार किया।
इस दिन रिलीज होगी फिल्म
जेंडे ने बाद में कहा था, ‘चार्ल्स को विशेष रूप से बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता।’ लेकिन उसकी चालाकी को मात देने वाला जेंडे जरूर असली हीरो है। अब जल्द ही मनोज बाजपेयी के अभिनय के जरिए उनकी कहानी ओटीटी के पर्दे पर आए, जिसे पूरी दुनिया देखेगी। फिल्म नेटफ्लिक्स पर 5 सितंबर को रिलीज हो रही है। फिल्म में मनोज बाजपेयी लीड रोल में हैं और जिम सर्भ ने चार्ल भोगराज का किरदार निभाया है।