मुंबई। महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के नतीजे आ गए हैं। अब तक हुई मतगणना के मुताबिक, जहां महायुति को लगभग 230 सीटों का प्रचंड बहुमत मिलता दिख रहा है तो वहीं महाविकास अघाड़ी (MVA) 55 सीटों पर ही सिमट गया है।
इसी के साथ यह तय हो गया है कि महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना (शिंदे)-एनसीपी(अजित पवार) के गठबंधन वाली यानी महायुति की सरकार बन रही है। एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के घर बधाइयां देने वालों का तांता लगने लग गया है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अब तक के रुझानों में महायुति गठबंधन बंपर बढ़त बनाए हुए हैं।
रुझान ही नतीजे बनते नजर आ रहे हैं। ऐसे में सबके मन में सवाल ये है कि जब भाजपा के खिलाफ विरोधी लहर थी, बीजेपी पर शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के आरोप, मराठा आंदोलन से लोग नाराज फिर भी इन सब झंझावतों से निपटने में महायुति कैसे सफल हुआ?
महायुति की जीत के वे कौन-से फैक्टर हैं, जिसने महाविकास अघाड़ी का सूपड़ा साफ कर दिया है।
- लड़की बहिन योजना और टोल न वसूलना
भाजपा नेतृत्व महायुति सरकार ने की लड़की बहिन योजना लागू करना सही फैसला साबित हुआ। इससे पहले मध्यप्रदेश में प्रचंड जीत का श्रेय भी वहां लागू लाडली बहना योजना को दिया गया।
महाराष्ट्र की जनता ने माना कि सीएम एकनाथ शिंदे के चलते उनके बैंक खाते में हर महीने धनराशि आ रहे हैं। अगर शिंदे दोबारा सीएम बनते हैं तो ये रुपये आते रहेंगे और बढ़ भी सकते हैं।
लड़की बहिन योजना का असर यह हुआ कि एमवीए के कोर वोटर्स के घरों की महिलाओं ने भी महायुति को वोट दिए, क्योंकि उनके बैंक अकाउंट में सीधे पैसा आ रहा था। चुनाव से पहले महायुति सरकार ने राज्य के कई टोल प्लाजाओं को टोल फ्री कर पुरुष मतदाताओं को अपने पक्ष में किया।
- शिंदे को सीएम बनाकर साधा बड़ा निशाना
पॉलिटिकल एक्सर्ट्स का मानना है कि भाजपा का एकनाथ शिंदे को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना और लगातार बनाए रखना, एक ऐसी चाल साबित हुई, जिसने एमवीए को चारों खानों को चित कर दिया। दरअसल, शिंदे मराठा क्षत्रप हैं।
उनको सीएम बना भाजपा की मराठा प्राइड को भुनाने की रणनीति कारगर साबित हुई। इतना ही नहीं, भाजपा समय-समय पर यह भी मैसेज दिया कि शिंदे फिर से सीएम बन सकते हैं।
जरांगेर पाटील के मराठा आंदोलन के बाद महाविकास अघाड़ी गठबंधन खुश थी, लेकिन भाजपा ने शिंदे पर दांव लगा, एमवीए को शिकस्त दे दी। शिवसेना (उद्धव) को कमजोर करने में शिंदे में अहम भूमिका निभाई। मराठी जनता ने शिंदे को ही मराठा सम्मान का प्रतीक माना और ठाकरे परिवार को बाहरी।
- भाजपा-शिवसेना का DNA एक
महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष खड़ा करने के उद्देश्य से साल 1989 में भाजपा और शिवसेना का पहली बार गठबंधन हुआ था। दोनों के बीच गठबंधन का मुख्य आधार हिंदुत्व की विचारधारा थी, जो दोनों दलों को एक साथ लेकर आई। हालांकि, समय-समय पर इस रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते रहे, लेकिन दोनों का कोर वोटर भी एक ही था।
साल 2019 में उद्धव ठाकरे भाजपा से नाता तोड़ एमवीए में शामिल हो गए, जिससे शिवसेना के कोर वोटर में नाराजगी भी थी। इस चुनाव में जहां मतदाताओं ने भाजपा नेतृत्व महायुति को जिताया है, वहीं असली शिवसेना की मुहर भी शिवसेना-शिंदे पर लगा दी है।
- राज्य में बंटर बांट नहीं चाहते मतदाता
महाविकास अघाड़ी गठबंधन में बेशक कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव गुट) शामिल हों, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एमवीए ने आईएनडीआई गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा।
उदाहरण के तौर पर स्वरा भास्कर के पति फहाद अहमद सपा में थे, लेकिन सीट बंटवारे के दौरान सपा के हिस्से कम सीटें आई थी। ऐसे में एनसीपी (शरद पवार गुट) ने अपने टिकट पर फहाद अहमद को अणुशक्ति नगर से चुनाव मैदान में उतारा।
कई और पार्टियों को भी किसी को दो तो किसी को तीन सीटें दीं, जिससे मतदाताओं को मैसेज गया कि अगर एमवीए जीतता है तो राज्य में सीएम पद और मंत्रिमंडल को रार मच सकती है। इस कारण भी मतदाताओं ने महायुति को चुना।
- भाजपा की नई रणनीति, स्थानीय को महत्व
भाजपा ने शुरुआत से ही अपनी रणनीति में स्थानीय राजनीति को महत्व दिया। हाल ही हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी से बहुत ज्यादा प्रचार नहीं कराया। भाजपा ने यही रणनीति महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी अपनाई। स्थानीय नेताओं को चुनाव प्रचार में आगे किया। यहां सबसे ज्यादा रैलियां और सभाएं डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस से कराई गईं।
- हिंदू-मुस्लिम दोनों को साधने में मिली सफलता
भाजपा नेतृत्व गठबंधन महायुति ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए ‘बंटेंगे तो कटेंगे और एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों का सहारा लिया। वहीं दूसरी ओर एनसीपी (अजित पवार) के मुस्लिम प्रत्याशी को समर्थन देकर यह भी मैसेज दे दिया कि वे मुसलमानों के विरोधी नहीं हैं।
दूसरा दांव चुनाव से ठीक पहले शिंदे सरकार ने मदरसों के शिक्षकों की सैलरी बढ़ाकर चला। इसके चलते महायुति को हिंदू और मुस्लिम दोनों का भर-भर कर वोट मिला।
- भाजपा को मिला संघ का साथ
विपक्ष मानकर चल रहा था कि अब भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के रिश्ते पहले से नहीं रहे हैं। इसके इतर भाजपा ने आरएसएस से आई दूरियों को खत्म किया। संघ ने भी चुनाव में भाजपा का पुरजोर साथ दिया।
संघ के कार्यकर्ता भाजपा का संदेश घर-घर लेकर गए और जनता से महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर भाजपा नेतृत्व महायुति गठबंधन को वोट देने की अपील की।
संघ कार्यकर्ताओं ने कहा कि लोकसभा सीट लेकर इस बार वोटिंग करें। लोगों को देश में भूमि जिहाद, लव जिहाद, धर्मांतरण, पत्थरबाजी और दंगे आदि की बढ़ती घटनाओं को लेकर भी जागरूक किया।