उत्तर प्रदेश में केले व अन्य फलों को जल्दी पकाने और चमकदार बनाने में इंसानी सेहत के लिए खतरनाक रसायनों एथेफॉन, कार्बाइड और सोडियम हाइड्रोक्साइड का मनमाना प्रयोग हो रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक रसायनों से फल जल्दी पक तो जाते हैं लेकिन उनकी पौष्टिकता नष्ट हो जाती है। ऐसे फलों के सेवन से बीमारियां भी बढ़ रही हैं। यही नहीं ये जल्दी खराब भी होते हैं। विभिन्न स्थानों से मिली शिकायतों के बाद अब खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) ने जांच अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है।
प्रदेश में छोटे-छोटे दुकानदार केलों को रसायन से बेधड़क पका और खपा रहे हैं। एफएसडीए को बाराबंकी, गोरखपुर, रायबरेली सहित विभिन्न जिलों से केले व अन्य फलों को पकाने में मानक से ज्यादा रसायन का प्रयोग होने के प्रमाण मिले हैं। इसे देखते हुए विशेष जांच अभियान चलाने का फैसला किया गया है। बाराबंकी के किसान नवनीत वर्मा बताते हैं कि वर्ष 2024-25 में केले का औसत भाव 2790 रहा है लेकिन इस वर्ष यह 2000 से नीचे चल गया है। स्थानीय व्यापारी खेत से केला लेते हैं और रसायन से पकाकर बाजार में बेच देते हैं। बड़े व्यापारियों ने तो केला पकाने का प्लांट (चैंबर) लगा रखा है। वे खेत से ही केला खरीद कर ट्रकों से ले जाते हैं और रसायनों से पकाने के बाद छोटे व्यापारियों को बेचते हैं।
पकाने के लिए लगा रखा है प्लांट
हैदरगढ़ बाराबंकी के केला आपूर्तिकर्ता जहीर बताते हैं कि खेत से केले को लाने के बाद प्लांट में रखा जाता है। यहां एथिलीन गैस का स्प्रे होता है। गैस की मात्रा विभाग से तय है। समय-समय पर इसकी जांच भी होती है। प्लांट से दो दिन बाद निकासी होती है। फिर छोटे व्यापारी इसे ले जाते हैं। फुटकर केला व्यापारी शमसुद्दीन बताते हैं कि जिन कस्बों में चैंबर की व्यवस्था नहीं है वहां कार्बाइड व अन्य रसायन से घर में ही केला, पपीता व अन्य फल पकाए जाते हैं। चैंबर से पकने वाले केले की अपेक्षा घर में रसायन से पकने बाला केला सस्ता पड़ता है लेकिन यह ज्यादा वक्त टिकता नहीं है। इसे 24 घंटे के अंदर बेचना होता है।

