रसूखदारों की मनमानी: आरटीई के तहत 14 स्कूलों ने 138 बच्चों को नहीं दिया दाखिला, अभिभावक भटकने को मजबूर

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रसूखदारों की मनमानी: आरटीई के तहत 14 स्कूलों ने 138 बच्चों को नहीं दिया प्रवेश, चक्कर लगा रहे अभिभावक

शहर के नामी और रसूखदार निजी स्कूलों की हठधर्मिता के आगे शिक्षा का अधिकार कानून (RTE) भी बौना साबित हो रहा है। गरीब और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से बने इस कानून को दरकिनार करते हुए 14 स्कूलों ने अब तक 138 बच्चों को दाखिला नहीं दिया। इन बच्चों के माता-पिता बीएसए दफ्तर के चक्कर काटते फिर रहे हैं, लेकिन स्कूलों पर इसका कोई असर नहीं है।

हालात यह हैं कि जब बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) ने स्कूलों को कारण बताओ नोटिस जारी किए तो स्कूल संचालकों ने उसे गंभीरता से लेना तो दूर, कचरे की टोकरी में डाल दिया। ना तो बच्चों को दाखिला मिला, ना ही बीएसए के नोटिस का कोई जवाब आया।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने की गारंटी देता है। इसके तहत कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों का दाखिला निजी स्कूलों में होता है और उसकी फीस सरकार देती है। लेकिन कुछ स्कूल प्रबंधक इस नियम को मानने के लिए तैयार नहीं हैं।

आरटीई के तहत इस बार करीब 13 हजार बच्चों ने आवेदन किया था। लक्ष्य था कि 6617 बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला मिले। शिक्षा विभाग का दावा है कि अब तक 5200 बच्चों को एडमिशन मिल चुका है, जबकि 1400 से ज्यादा बच्चों को दाखिला नहीं मिला। इनमें से कुछ के आवेदन अधूरे हैं, लेकिन 138 बच्चे ऐसे हैं जिनके दस्तावेज पूरे हैं, फिर भी स्कूल उन्हें एडमिशन नहीं दे रहे।

अब मान्यता रद्द करने की तैयारी
जिलाधिकारी अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने साफ कहा है कि शिक्षा हर बच्चे का हक है और जो स्कूल आरटीई के तहत दाखिला नहीं दे रहे हैं, उनकी मान्यता रद्द की जाएगी। उन्होंने बीएसए से पूरी रिपोर्ट मांगी है और शासन को रिपोर्ट भेजकर मान्यता रद्द करने की सिफारिश की जाएगी। साथ ही, स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से हर साल ड्रेस बदलने और फीस बढ़ाने की प्रक्रिया पर भी रोक लगा दी गई है।

सरकारी नियमों को ठेंगा दिखा रहे ये स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहे हैं — जब कानून का पालन नहीं होगा, तो फिर गरीब बच्चों को उनके अधिकार कैसे मिलेंगे?

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