भारतीय संविधान के डॉ. भीमराव आंबेडकर ने बीएचयू, विद्यापीठ और सारनाथ में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था कि शिक्षा शेरनी का दूध है जो पीएगा दहाड़ेगा…। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद वह धम्म यात्रा के लिए अंतिम बार बनारस आए थे।
बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रो. एमपी अहिरवार ने बताया कि 1956 में 22 से 25 नवंबर के बीच बाबा साहेब बनारस आए थे। बनारस से लौटने के बाद छह दिसंबर 1956 को उनका परिनिर्वाण हो गया। काठमांडू से लौटते समय जब वह कैंट स्टेशन पर देर रात पहुंचे तो वहां बीएचयू के छात्रों और बौद्ध अनुयायी ने उनका स्वागत किया था। इसके बाद वह सारनाथ के बौद्ध मंदिर पहुंचे। भिक्षुओं ने बाबा साहेब से संवाद कर बताया कि वह वर्तमान में विद्यालय का संचालन कर रहे हैं। बाबा साहेब ने कहा कि विद्यालय तो चलाना ठीक है, लेकिन उनको महाविद्यालय खोलना चाहिए। कहा कि एक हजार प्राइमरी एजुकेटेड की तुलना में एक ग्रेजुएट बेहद महत्वपूर्ण होता है।
बीएचयू में बाबा साहेब ने कहा था कि हमको आधुनिक युग में वैज्ञानिक शिक्षा के साथ आगे बढ़ना होगा। आप आंख और कान बंद कर पढ़ाई न करें। देश और दुनिया में क्या चल रहा है इसका भी ध्यान रखें। प्रो. अहिरवार ने कहा कि बाबा साहेब उच्च शिक्षा पर बहुत जोर देते थे।