गोवा भारत की ऐसी जगह है जहां घूमने की ख्वाहिश हर किसी की होती है खासकर नौजवानों की. बात हनीमून की हो या पार्टी की, कोई सेलिब्रेशन हो या फिर एडवेंचर्स वाटर स्पर्ट्स, गोवा हर किसी की पहली पंसद होती है. गोवा का नाम जहन में आते ही लोगों को समुद्र से उठती लहरें, पार्टियों से गुलजार बीच, या फिर बड़ी-बड़ी नावों में सवार समुद्र में जाल फेंकते मछुआरों की छवि जीवंत हो उठती है. शायद इसीलिए गोवा को पर्यटकों का शहर भी कहा जाता है. गोवा में नारियल के पेड़ और समुद्र के लहरों पर पड़ती सूरज की किरणें बड़ा ही मोहक दृश्य पेश करती हैं. यहां समुद्र से उगते और डूबते सूरज का नजारा देखना अलग ही सुकून देता है.
समुद्र की लहरों से अलग गोवा का एक और सबसे बड़ा आकर्षण है दूधसागर जलप्रपात (Dudhsagar Water Falls). दूर से देखने में यह वाकई दूध का सागर लगता है. दूधसागर के झरने की बीच से निकलती ट्रेन देखना वाकई एक अद्भुत नजारा है.
दूधसागर वॉटरफॉल दक्षिण यानी साउथ गोवा में है. दूध का यह झरना कर्नाटक और गोवा के बॉर्डर पर स्थित हैं. बताया जाता है कि दूधसागर जलप्रपात भारत के सबसे ऊंचे झरनों में से एक है. इसकी ऊंचाई लगभग 310 मीटर है.
तो हम आपको ले चलते हैं दूधसागर वॉटरफॉल के बेहद खूबसूरत और रोमांचकारी ट्रैक पर. हमारा गोवा का प्लान अचानक से बना और हम चार दोस्त दिल्ली से गोवा के लिए निकल पड़े. दो लोग पहले भी गोवा आ चुके थे. लेकिन पूरा गोवा देख पाना एक नौकरीपेशा वालों के लिए हमेशा से मुश्किल टास्क रहता है. इसलिए हमने तय किया कि गोवा में इस बार ऐसी जगह को एक्सप्लोर किया जाए जहां लोग कम ही जा पाते हैं. और वो जगह थी दूधसागर वॉटरफॉल.
दूधसागर का खूबसूरत नजारा. दूर से जब आप इस झरने को देखेंगे तो मालूम पड़ेगा दूध की कई नदियां बह रही हैं. यह खूबसूरत झरना भगवान महावीर सेंचुरी और मोलम नेशनल पार्क में स्थित है. मंडोवी नदी कर्नाटक के बेलगावी से निकलती है और गोवा की राजधानी पणजी होते हुए अरब सागर में जाकर मिल जाती है.
कोल्वा बीच के पास होटल
दिल्ली से हमारी फ्लाईट दोपहर की थी, लेकिन लगभग चार घंटे देरी से चलने के कारण हम लोग शाम 7 बजे पणजी एयरपोर्ट पहुंचे. वहां से साउथ गोवा के लिए टैक्सी ली. यहां हमने कोल्वा बीच (Colva Beach) के पास होटल लिया. महज एक हजार रुपये प्रति कमरे के हिसाब से हमें एक शानदार होटल मिल गया.
साउथ गोवा में पोलोलेम बीच, एगोडा बीच सहित कई शांत और सुंदर बीच हैं. यहां की हरियाली और पुर्तगाली शैली में बने घरों का अपना अलग ही आकर्षण है. अगले दिन सुबह हमें दूधसागर वॉटरफॉल के ट्रैक पर निकलना था इसलिए हम जल्द ही सो गए. सुबह जब पता किया तो कहीं से कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल रही थी. चूंकि सीजन बरसात का था. हम लोग अगस्त में गोवा गए थे, इसलिए हमसे कहा गया कि इन दिनों दूधसागर झरना पर्यटकों के लिए बंद रहता है. कई लोकल ट्रैवल एजेंसी से बात कीं. पता चला कि दूधसागर की ट्रैक तो पूरे साल खुला रहता है. बस बरसात के दिनों में जीप सफारी बंद कर दी जाती है और पर्यटकों को पैदल ही झरने तक जाना पड़ता है.
दूधसागर ट्रैंकिंग का प्लान
जानकारी मिली कि अगर आप ट्रैवल एजेंट के जरिए दूधसागर ट्रैंकिंग का प्लान करते हैं तो थोड़ा महंगा पड़ेगा. 5-6 हजार रुपये प्रति व्यक्ति का पैकेज होता है. इसमें पैकेट बंद नाश्ता और गाईड दिया जाता है.
सब जानकारी जुटा लेने के बाद हमने प्लान बनाया कि क्यूं न घूमते-टहलते और कुछ नया एक्सप्लोर करते हुए खुद ही अकेले ट्रैकिंग पर जाया जाए. फिर क्या था हमने दो स्कूटर किराये पर लिए और निकल पड़े कोलवा से कूल्लम के लिए. गोवा में आप आसानी से कार या बाइक किराये पर ले सकते हैं. 300 -350 रुपये प्रति दिन के हिसाब से स्कूटर मिल जाते हैं.
दूधसागर वॉटरफॉल जाने के लिए हमें कूल्लम पहुंचना होता है. यहां आप लोकल ट्रेन से भी आ सकते हैं और बस भी ले सकते हैं. कोलवा से कूल्लम की दूरी तकरीबन 70 किलोमीटर है. इस दूरी में सबसे ज्यादा रोमांचकारी है गोवा के जंगलों से होते हुए पहाड़ीनुमा रास्ते पर चलना. वैसे मॉनसून सीजन में गोवा का मौसम बहुत ही सुहावना होता है. हल्की रिमझिम बारिश और ठंडी-ठंडी बयार जब आपको छू कर निकलती है तब बस इसी में खो जाने का दिल करता है. कुल्लम तक का पूरा रास्ता महावीर फॉरेस्ट से होते हुए ही गुजरता है.
खूबसूरत रास्तों से होते हुए हम लोग लगभग दस बजे कुलेम पहुंच गए थे. यहां आकर पता चला दुधसागर जलप्रपात जाने के लिए तीन तरीके हैं- पहला आप जंगल से होते हुए ट्रैक करके जाओ. दूसरा यहां जीप चलती है जो मॉनसून के वक़्त बंद होती है और तीसरा तरीका है ट्रेन. दूधसागर कोई स्टेशन नहीं है. यहां ट्रेन 1-2 मिनट के लिए रुकती है आप ट्रेन में ही बैठकर झरने को निहार सकते हैं.
गाइड है जरूरी
कुलेम स्टेशन के पास आपको बहुत से गाइड मिलेंगे. हां, यहां बता दें कि दूधसागर वॉटरफॉल्स के नजदीक जाने के लिए आपको गाइड लेना जरूरी है. गाइड हजार-आठ सौ रुपये प्रति टूरिस्ट के हिसाब से चार्ज बोलना शुरू करते हैं. अगर आप बारगेनिंग कर सकते हैं तो रेट बहुत कम हो जाएगा. हमने 400 रुपए प्रति टूरिस्ट के हिसाब से फाइनल किया. गाइड एक ग्रुप में लगभग 10 टूरिस्ट को लेकर चलता है.
स्टेशन के पास ही अपने स्कूटर पार्क करके हम गाइड के साथ चल दिए. जंगल विभाग की सीमा में आने पर वहां से 100 रुपये प्रति टूरिस्ट चार्ज किया जाता है. यह चार्ज गाइड ही देता है. इसके बाद हम चल पड़े 11 किलोमीटर लंबे ट्रैक पर. हां, ट्रैकिंग पर निकलने से पर पानी की बोतल और खाने-पीने का सामान जरूर साथ रख लें. क्योंकि यहां आपको रास्ते में पीने के लिए झरनों का पानी तो मिल जाएगा, लेकिन खाने के लिए कुछ नहीं है.
दूधसागर वॉटरफॉल ट्रैक का एक दृश्य. खूसूरत और घने जंगल के बीच यह ट्रैक है जहां हमें नदी, पहाड़, झरने सब मिलने वाले हैं और अगर हम जंगल में खो गए तो क्या मालूम गोवा से कर्णाटक पहुंच जाएं. क्योंकि ये जंगल गोवा और कर्नाटक के बीच फैला हुआ है. ये ट्रैक हमारा बाकि अन्य ट्रैक से बहुत ही अलग होने वाला था. बारिश की वजह से कहीं-कहीं मिट्टी बहुत चिकनी है जहां फिसलने का डर है. हमारे गाइड ने हमें चेता दिया कि जरा ध्यान से चलना क्योंकि बरसात में इस जंगल में सांप बहुत निकलते हैं.
11 किलोमीटर जंगल से भरा ट्रैक
हमारे गाइड के साथ दस से पंद्रह लोगों का ग्रुप था. इसमें अलग-अलग राज्य से आए हुए लोग थे. ज्यादातर यंगस्टर्स थे. जंगल की खूबसूरती के बीच हम चले जा रहे थे. इस 11 किलोमीटर के ट्रैक पर लगभग 5 किलोमीटर के अलग-अलग टुकड़े सीधी खड़ी चढ़ाई के हैं. पेड़ों के झुरमुट के बीच से बहते पानी पर चलना अलग ही रोमांच पैदा कर रहा था. कई जगह ऐसी थीं जहां हमें झरने पार करके आगे बढ़ना था. कई बार जूते उतारे और फिर पहने. कल-कल करती झरनों की तेज आवाज इस ट्रैक के आनंद को कई गुना कर देती है. पूरा जंगल एकदम शांत, केवल टूरिस्टों की बातचीत या फिर पड़ों पर कलरव करते अनूठे पंक्षियों की चहचाहट गूंज रही थी.
हमारे गाइड ने कहा कोई फायदा नहीं, जूते नहीं बचेंगे और हम अपनी समझदारी दिखाते हुए बार-बार जूते उतारते और फिर पहनते. इस तरह लगभग नौ किलोमीटर का रास्ता तय कर लिया था. जंगली फूल, नदियां और पेड़ों झूलतीं विशाल और मजबूत लताएं तथा दीमक बड़ी-बड़ी बांबियों को देखकर मन में कई बार डर-सा भी बैठ जाता. रास्ते में लकड़ी का एक पूल मिला. यहां लिखा था- ये पुल कमजोर है. दो-दो लोग करके निकलें. एक साथ यहां चढ़ना खतरे से खाली नहीं था. यह ट्रैक इतना एडवेंचरस होने वाला है ये हमने सोचा नहीं था.
दूधसागर वॉटरफॉल के रास्ते में एक झरने को पार करते टूरिस्ट. ट्रैक के रास्ते पर ही एक तेज धारा वाली नदी मिली जिसको हमें पार करना था. नदी का बहाव बहुत तेज था, हमसब को एकदूसरे का हाथ पकड़कर नदी पार की. डर ये लग रहा था कि अगर हाथ छूटा तो पता नहीं किधर निकल जाएंगे. पत्थर चिकने और उन पर काई जमी थी. यहां जूते उतारने का कोई विकल्प नहीं था. अब समझ में आया कि हमारा गाइड ने हमसे क्यों कह रहा था कि जूते उतरने का कोई फायदा नहीं, गीले तो होने ही थे.
अब थोड़ा आगे बढ़ने पर दूधसागर झरना नज़र आ रहा था. हमारा वहां पहुंचने का उत्साह और भी बढ़ गया क्योंकि मंजिल अब बहुत पास नज़र आने लगी थी. कुछ ही देर में हम पहुंच गए अपनी मंज़िल पर. यहां जो नज़ारा हमने अपनी आंखों से देखा उसको बयां करना मुश्किल है. यहां लंगूर और बंदरों की पूरी फौज रहती है, लेकिन वे पर्यटकों से कुछ नहीं कहते. पर्यटक अपने साथ खाने-पीने का जो सामान लाते हैं उनमें से बचा-कुचा बंदरों को दे देते हैं. आंखों के सामने खूबसूरत नजारा तो था ही लेकिन आसपास बिखरे प्लास्टिक कचरे के ढेर को देखकर दुख भी हुआ.
अब हम सभी अपना सामान एक बड़े से पत्थर पर रख कर पहुंच गए पानी के अंदर. सबने खूब जम कर मस्ती की और फोटोग्राफी की. हमारी आंखों के सामने एक बेहद खूसूरत नज़ारा दिखा जब वाटरफॉल के ठीक सामने से एक ट्रेन गुजर रही थी. आपने रोहित शेट्टी की चेन्नई एक्सप्रेस मूवी तो देखी होगी जिसमे शाहरुख खान ट्रेन से सफर करते हैं और सामने जो नज़ारा दिखता है वही नजारा हमने भी देखा. दूधसागर का पानी वाकई इतना स्वच्छ और शीतल था कि शरीर पर पड़ते ही एक-एक अंग रोमांचित हो उठता है.
दूधसागर वॉटरफॉल के रास्ते में पड़ने वाला लकड़ी का झूला पुल. बहुत मस्ती के बाद अब चलने का समय हो गया था क्योंकि सूरज ढलने से पहले हमें जंगल से निकलना था नहीं तो गाइड पर जुर्माना लगता है. अब हम चल दिए वापसी की ओर. दिनभर की ट्रैकिंग और पानी में खूब सारी मस्ती के बाद हम सबकी हालत खराब थी. आधे रस्ते के बाद गाइड ने बताया कि अगर हम रेलवे ट्रैक से होकर चलेंगे तो कई किलोमीटर का रास्ता बच जाएगा. लेकिन इस ट्रैक पर चलना जोखिम से कम नहीं है, क्योंकि रेलवे ट्रैक पर चलना गैरकानूनी है. और अगर कोई पकड़ा जाता है तो रेलवे पुलिस उस गाइड का लाइसेंस रद्द करके उस पर जुर्माना लगा सकती है.
लेकिन यहां गाइडों का आपसी तालमेल बड़ा जबरदस्त देखने को मिला. उन्हें सूचना मिलती रहती है कि किसी नाके पर सिक्योरिटी है, किस पर नहीं. यहां हमने थोड़ा रिस्क लिया और कुछ समय रेलवे ट्रैक पर चले. क्योंकि जूते पूरी तरह गीले हो चुके थे. पैर थकान की वजह से आगे बढ़ने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे.
बारिश, अंधेरा और घना जंगल
अंधेरा घिरने लगा था, लगातार बारिश हो रही थी, जिसकी वजह से जंगल और ज्यादा घना तथा डरावना लग रहा था. बड़ी मुश्किल से हम घने जंगलों की चीरते हुए बड़ी मुश्किल से वापस उस जगह पहुंचे जहां से हमने ट्रैकिंग शुरू की थी. शाम के छह बज चुके थे.
अब टास्क था वापस साठ किलोमीटर स्कूटर चलाते हुए अपने होटल पहुंचना. भारी थकान के बाद वापसी के ये 60 किलोमीटर भी बहुत ही शानदार रहे. अंधरे में हम जंगल से वापस होते हुए कोल्वा बीच की तरफ बढ़ रहे थे. खामोशी में डूबी जंगल की सड़कें एक तरफ जहां रोमांच पैदा कर रही थीं, वहीं किसी अनहोनी के डर से दिल धड़क-धड़क भी कर रहा था. क्योंकि हम कई बार ऐसे सूनसान मोड़ों पर पहुंचे जहां हमें कुछ देर इंतजार करके पूछना पड़ा कि इधर जाना है या उधर. लेकिन जैसा कि गोवा के बारे में कहा जाता है कि यहां कि सड़कें रात में भी पर्यटकों के लिए उतनी ही मजफूज होती हैं जितना कि आप घर में खुद को महफूज करते हैं. और हम बिल्कुल महफूज अपने होटल पहुंच गए.
हम लोगों को बिल्कुल ये अंदाजा नहीं था कि गोवा में भी हम एडवेंचर्स ट्रैकिंग का मजा ले सकते हैं. अगर आपका भी गोवा जाने का प्लान बने तो इस खूबसूरत ट्रैक पर जाने का प्लान जरूर बनाएं. आपकी यादों की एलबम को और यादगार बना देगी दूधासागर वॉटरफॉल ट्रैक.