झांसी-गुरसराय में पधारे प्रथम बार महामुनि राज की बागवानी
धन्य धन्य हो उठी गुरसराय की धारा जब जीवन है पानी की बूंद महाकाव्य के मूल रचयिता परम पूज्य भावलिगी आदर्श श्रमणाचार्य गुरुवर श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनि राज नगर में पधारे पूज्य आचार्य श्री के प्रथम नगरआगमन पर भक्तों का विशाल जनसैलाब उमड़ा

आचार्य श्री के प्रथम नगरआगमन पर भक्तों का विशाल जनसैलाब उमड़ा और स्थान स्थान पर भक्त परिवार द्वारा गुरुवर का फासुकजल से पाद प्रक्षालन कर अपने सौभाग्य का वर्धन किया नगर के प्रमुख मार्गो से आचार्य श्री ने अपने विशाल चतुविध संघ सहित पद बिहार करते हुए श्री पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर भक्त और श्रद्धालुओं ने आचार्य संघ का मांगलिक आगवानी और स्वागत किया
गुरसराय में विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा महावीर भगवान ने जन्म लिया हमने भी जन्म लिया विक्रम करते थे हम भी कर्म कर रहे हैं लेकिन कर्म में अंतर है हम जो कर्म करते हैं वह कर्म बांधने के लिए करते हैं भगवान महावीर ने कर्म किया तो कर्म बांधने के लिए नहीं यद्यपि कर्म काटने के लिए किया आचार्य श्री ने आगे कहा भो जीना गम पंथी आत्माओं आचार्य कुंदकुंद ने कहा आगम चक्षु साधु अर्थात आगम ही निर्गत बीत रागी साधु की आंखें हैं मैं वही दो नेत्र धारण करके अपने जीवन में आया हूं इस देश में दो मित्र तो कर्म से मिलते हैं