जालौन: कोंच क्षेत्र के ग्राम चाँदनी धाम में 11कुण्डीय श्रीविष्णु महायज्ञ एवं राधा कृष्ण की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर चल रहे धार्मिक अनुष्ठानों के तहत आयोजित की जा रही श्रीमद भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के आज तृतीय दिवस रविवार को कथा व्यास वात्सल्य की प्रति मूर्ति दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा ने श्रद्धालुओं के अपार जनसमूह को कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि “जब टूटा हुआ अक्षत भगवान पर नहीं चढ़ता है तो टूटा हुआ मन भगवान को कैसे अर्पित हो सकता है। बिखरे हुए मन से कथा सुनने का कोई अर्थ नहीं है। जैसे भगवान की पूजा में चावल का अक्षत होना जरूरी है, वैसे ही यहाँ कथा में चित्त का अक्षत होना बहुत जरूरी है। दोहरे मन की कोई साझेदारी कथा में चल नहीं सकती है। यहाँ पर अपने मन, बुद्धि और चित्त को समाहित करना होगा।
कथा सुनते समय यह मत सोचना कि अभी योग्यता नहीं है। वह कोई और है जो नर्मदा के वेगवान धारों की चोटों को सहकर कंकर से शंकर बन गया। वो तो गंगा या नर्मदा की पावन गोद में था इसीलिए लहरों के थपेड़े खाते हुए शंकर बनकर अरघे पर विराजमान हो गया। ये मत सोचना कि हम तो बिखरे हुए हैं, कदाचित हमारे अंदर वो सामर्थ्य नहीं है लेकिन स्मरण रखिएगा कि क्या हुआ अगर वो अरघे पर बैठ नहीं पाया है लेकिन अरघा बनकर शंकर के काम वही आया है। भक्तों का जनसैलाब उमड़ जब शंकर तक जाता है तो सीढ़ी का पत्थर बनकर कंकड़ ही तो ले जाता है।
टूटा हुआ अक्षत भगवान पर नहीं चढ़ता तो टूटा हुआ मन भगवान को कैसे अर्पित हो सकता: दीदी मां ऋतम्भरा
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