
जोशीमठ और इसके आस पास के क्षेत्र को लेकर 2010 में गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अध्ययन के बाद एक सर्वे रिपोर्ट जारी किया था । इस रिपोर्ट में इस पूरे क्षेत्र में भारी निर्माण पर रोक लगाये जाने की वकालत की गयी । तब से लेकर अब तक यानि 22 साल में कांग्रेस और बीजेपी के 10 मुख्यमंत्री बने । अविभाजित उत्तर प्रदेश की सरकार और बाद में विभाजित उत्तराखंड की सरकार दोनों ने इस रिपोर्ट की अनदेखी की । किसी सरकार ने ये उचित नहीं समझा कि इस सर्वे रिपोर्ट को पलट कर देखा जाये । सालों साल ये रिपोर्ट सरकारी कार्यालय के किसी कोने में धूल फांक रही होगी। और तो और इस त्रासदी को लेकर स्थानीय लोंगों का कहना है कि करीब डेढ़ साल से सरकार और स्थानीय प्रशासन से गुहार लगाने पर भी कोई कार्यवाई नहीं की गयी । आज सरकारों और व्यवस्थाओं की इस अनदेखी का दंश झेलने के लिये न केवल जोशीमठ बल्कि कर्णप्रयाग जैसी जगहों पर भी आपदा की आमद दर्ज हो रही है । दरअसल इस पूरे परिक्षेत्र की भौगोलिक संरचना को देखने पर ये साफ हो जाता है कि यहां की जमीन कभी इतनी ठोस नहीं रही कि बहुमंजिली इमारतों का निर्माण किया जाये । जब मैंने यहां का दौरा किया था आज से करीब सात साल पहले तो यहां के लोगों से चाय की गुमटी पर बात करने का मौका मिला । उस वक्त हमने इच्छा जाहिर की कि यहां का ट्रेडिशनल मकान देखा जाये । उस वक्त भी इक्के दुक्के पारंपरिक मकान हीं नजर आये जो लकड़ियों के सांचे से बनकर निर्मित हुये थे । मेरे ख्याल से वहां के लोगों ने इस मकान निर्माण की परंपरा को वहां के आबोहवा और जमीनी संरचना को दृष्टिगत रखकर हीं तैयार किया होगा । जो पारंपरिक मकान हुआ करते थे उसका मुआयना करने के बाद मुझे साफतौर पर से ऐसा महसूस हुआ था कि ईंट पत्थर का इस्तेमाल नहीं होने से उतने वजनी भी नहीं होगें । साथ हीं मिट्टी का इस्तेमाल होने से वातानुकुलित अनुभूति साफ तौर पर समझा जा सकता था । जैसे जैसे विकास और पर्यटकों की आमद इस क्षेत्र में बढ़ी लोंगों ने पारंपरिक मकान निर्माण की शैली को छोड़कर ईंट पत्थरों के भारी भरकम मकान बनाने शुरू कर दिये । ये एक बड़ी वजह यहां के भूसंतुलन को खराब करने के लिये जिम्मेवार कही जा सकती है । इसके अलावे यहां पर एनटीपीसी के टनल का निर्माण को भी कुछ विशेषज्ञ इस आपदा की वजह मानते हैं । बढ़ती आबादी ने यहां के प्राकृतिक संतुलन को भी काफी नुकसान पहुंचाया है, इसमें कोई दो राय नहीं हैं । कुछ विशेषज्ञों को मैं पढ़ रहा था उनका ये भी मानना है कि यहां जमीन के भीतर पानी का जमावड़ा भी इस भू धसान की बड़ी वजह मानी जा रही है । अब जबकि सर से ऊपर पानी बह गया तब जाकर दिल्ली से लेकर देहरादून तक सरकार की नींद उड़ी है, लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐहतियाति कार्यवाई करने में बहुत देर हो चुकी है ।
अब विस्थापन की प्रक्रिया शुरू की जा रही है, लेकिन इस विस्थापन में एक बड़ी त्रासदी छुपी है । उन लोगों का क्या दोष जिन्हें आज अपना घर बार छोड़कर अपनी बसी बसायी गृहस्थी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। लोगों के आंखों में आंसू का अगर कोई जिम्मेवार है तो वो है व्यवस्था का नकारापन । अगर समय रहते यहां के लिये जारी चेतावनी और सर्वे रिपोर्ट को अमलीजामा पहनाया जाता तो शायद आज जोशीमठ की ये हालत नहीं होती । अब तो लगातार केन्द्रीय मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री और मंत्रियों तक का दौरा जारी है, विशेषज्ञों की टीमें भी लगातार दौरा कर रही हैं । हमारे देश की ये बड़ी विडंबना है कि जब तक घर में आग न लगे उसे बुझाने के बारे में शायद हीं कोई सोचता है । लोगों की बातें, उनकी पीड़ा सुनकर मन आहत हो जाता है । अपने घर से विरत होने का जो मार्मिक माहौल जोशीमठ में देखने सुनने को मिल रहा है वो वाकयी दुख दायी है । अब तो सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले की सुनवायी होने जा रही है ।
लेकिन इन सबके बीच ये हकीकत है और मैं बार बार ये कहना चाहूंगा कि पिछले 22 साल से सोती सरकारें क्या इस त्रासदी के लिये अपनी जिम्मेवारी लेने को तैयार है ? हरेक ऐसे मुद्दे पर सियासत का तेज होना कोई नयी बात नहीं है लेकिन आंख बंद किये व्यवस्था और इस तरह के मुद्दों की सियासत के बीच पिसती है तो केवल आम जनता, जैसा जोशीमठ में देखने को भी मिल रहा है। मौजूदा सरकार ने तो अगले छ महीने तक प्रभावित करीब सात सौ ज्यादा परिवारों को हर महीने चार हजार रुपये देने का ऐलान कर दिया, लेकिन क्या इस धन राशि से लोगों को वो सबकुछ हासिल हो जायेगा जो यहां के लोगों को पहले हासिल था ये सोचने वाली बात है । जबाब आपका हो या मेरा हो – जबाब ना में हीं होगा । पहाड़ी संस्कृति को बचाना हरेक सरकार की जबाबदेही होना हीं चाहिये । सरकारों को ये समझना होगा कि यहां विकास का ऐसा मॉडल हीं प्रभावी हो सकता है जो यहां के प्राकृतिक ढांचे को प्रभावित न करे। वरना जोशीमठ हीं क्या इस पूरे इलाके में भयंकर प्राकृतिक आपदा को आने से नहीं रोका जा सकता । इस कड़ी को आगे भी आपसे साझा करूंगा और कुछ और तथ्य आपके सामने रखूंगा जिससे देवभूमि के जोशीमठ जैसे और भी देवभूमि की शहरों को बचाया जा सके । क्रमश :