मेघालय : मातृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाओं के सशक्तिकरण की जटिल हकीकत

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BREAKING CHAINS, FORGING PROGRESS & EMPOWERING WOMEN IN MATRILINEAL MEGHALAYA

भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित मेघालय अपने विशिष्ट मातृसत्तात्मक समाज के कारण लंबे समय से चर्चा में है। यहाँ वंश, संपत्ति और पहचान मातृ-पक्ष से आगे बढ़ती है। महिलाएँ पारिवारिक और आर्थिक निर्णयों के केंद्र में होती हैं, जो पितृसत्तात्मक समाजों के लिए एक अनोखी मिसाल है।

यह परंपरा कोई नया प्रयोग नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही व्यवस्था है जिसने पितृसत्ता की वैश्विक लहरों के बीच भी अपनी पहचान बनाए रखी है। इसके बावजूद, विशेषज्ञ मानते हैं कि मातृसत्तात्मक ढाँचा अपने आप में पूर्ण सशक्तिकरण की गारंटी नहीं देता।

वास्तविकता यह है कि मेघालय की महिलाएँ भी सामाजिक दबावों और पारंपरिक अपेक्षाओं से जूझ रही हैं। संपत्ति पर अधिकार और उत्तराधिकार में प्राथमिकता के बावजूद, राजनीति, प्रशासन, कॉर्पोरेट क्षेत्र और औपचारिक नेतृत्व भूमिकाओं में उनका प्रतिनिधित्व सीमित है। यही वह क्षेत्र है जहाँ वास्तविक शक्ति और प्रभाव केंद्रित होता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा, कौशल-विकास और उद्यमिता के अवसर महिलाओं की स्थिति को और मजबूत कर सकते हैं। नेतृत्व प्रशिक्षण और आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाकर परंपरा और आधुनिकता के बीच की खाई को पाटा जा सकता है।

मेघालय की मातृसत्तात्मक व्यवस्था दुनिया के लिए एक प्रेरक उदाहरण है, परंतु यह तभी एक सशक्त मॉडल बन सकती है जब महिलाएँ केवल उत्तराधिकारी ही नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य की सक्रिय निर्माता भी बनें।

जैसा कि समाजशास्त्री बताते हैं, “महिलाओं के सशक्तिकरण की कहानी केवल परंपरा का संरक्षण नहीं, बल्कि उन्हें शक्ति के वास्तविक केंद्र तक पहुँचाने का प्रयास है।” मेघालय की यह यात्रा न केवल उत्तर-पूर्व भारत बल्कि पूरे देश और विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।

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