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शाही सवारी आज सवारी की इंतजार में, आधुनिकता के दौर में दाने-दाने को मोहताज हुए तांगा चालक
पारंपरिक सवारी तांगा लगभग सभी शहरों से गायब हो चुके हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर अब भी तांगा से सफर किया जा सकता है। हालांकि, बदलते समय और महंगाई के कारण तांगे की सवारी धीरे-धीरे खत्म हो रही है।

आपको बताते चले की सड़कों पर शानदार गाड़ियां, ई-रिक्शा और ऑटो जैसे वाहनों का दौड़ना आम बात है, लेकिन जब तेज रफ्तार गाड़ियों के इस दौर में शहरों की सड़कों पर टक-टक की आवाज के साथ घोड़ा गाड़ी तांगा चलता है तो ये हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है, अब भी पारंपरिक सवारी घोड़ा तांगे को चलते हुए देखा जा सकता है। लेकिन अब ये सवारी धीरे-धीरे आधुनिक दौर में गायब होने लगी है। जिसका कारण महंगाई और मंदी की मार है। एक समय था जब रेलवे स्टेशन के बाहर लंबा चौड़ा तांगा स्टैंड हुआ करता था, जिसमे तांगे खड़े होते थे, लेकिन जैसे-जैसे ऑटो रिक्शा और उसके बाद ई-रिक्शा कि बाजार में आमद बढ़ी तो आम यात्रियों ने तांगों से दूरी बना ली। यही कारण है कि अब इस तांगा स्टैंड पर बमुश्किल 7-8 तांगे ही दिखाई देते हैं।ऐसे में तांगा चलाने वाले लोगों के लिए गुजर बसर करना मुश्किल हो रहा है। बदलते समय के साथ तकनीक के साथ साथ जरूरतें भी बदल जाती हैं। एक समय में जिस तांगे की सवारी को शाही सवारी माना जाता था। आज आधुनिक वाहनों के सामने वह शाही सवारी तकरीबन खत्म हो चुकी है। लेकिन अभी भी संतकबीर नगर जनपद बखीरा क्षेत्र में तांगे की सवारी लोग करते नजर आ रहे हैं तांगा चालक हनीफ ने बताया कि आधुनिकता और महंगाई ने तांगा चालकों के सामने समस्या उत्पन्न कर दी है।घोड़ा गाड़ी में बैठने वाले सवारी के न मिलने से जहां तांगा चालक परेशान है। वहीं घोड़ों के लिए दो समय का चारा जुटाना भी इनके लिए समस्या बना हुआ है। हालात यह है कि तांगा चालक और घोड़े दोनों ही दाने-दाने को मोहताज हैं।