UP: चंबल में बढ़ा कछुओं का कुनबा, ढोर प्रजाति के 136 नन्हें मेहमान शामिल; बढ़ाई गई सुरक्षा

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UP: चंबल में बढ़ा कछुओं का कुनबा, ढोर प्रजाति के 136 नन्हें मेहमान शामिल; बढ़ाई गई सुरक्षा

दुनिया से लुप्त हो रहे बटागुर कछुओं की ढोर प्रजाति के 136 नन्हे मेहमान बुधवार और बृहस्पतिवार को चंबल नदी में पहुंच गए। इनमें बुधवार को 3 नेस्ट से जन्मे 56 और बृहस्पतिवार को 5 नेस्ट से जन्मे 80 शिशु शामिल हैं।

बाह के रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि फरवरी और मार्च में कछुओं की साल और ढोर प्रजाति की नेस्टिंग हुई थी। चंबल नदी के किनारे की बालू में नेस्ट बनाकर मादा ने 10 से 30 अंडे दिए थे। अंडों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए लोहे की जाली लगाई गई थी। हैचिंग पीरियड शुरू होते ही जाली हटा ली गई थी। नेस्ट के अंडों से निकले बच्चों को एकत्रित कर चंबल नदी में पहुंचाने में वन विभाग की टीमें जुटी हैं। नेस्ट की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

रंग बदलने लगे तिलकधारी कछुए
बटागुर कछुओं की साल प्रजाति सिर्फ चंबल नदी में बची है। ढोर के बाद होने वाली साल प्रजाति की हैचिंग की तैयारी में वन विभाग जुटा है। प्रजनन सीजन में तिलकधारी (साल प्रजाति) कछुए रंग बदलने लगे हैं। 15 साल से कछुओं के संरक्षण पर काम कर रहे टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) के प्रोजेक्ट अफसर पवन पारीक ने बताया कि नर कछुए का सिर का रंग लाल, नीला, पीला, सफेद हो जाता है। बटागुर कछुए की करीब 500 मादाएं प्रजनन कर रही हैं। रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि साल प्रजाति के कछुओं की हैचिंग के लिए नेस्ट पर लगी जाली को हटा लिया गया है।
पल रहीं 8 दुर्लभ प्रजातियां
चंबल नदी में कछुओं की 8 दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण हो रहा है। इनकी आबादी एक लाख से ज्यादा है। जिनमें कठोर कवच वाली ढोर, साल, पचेड़ा, काली ढोर, नरम कवच वाली स्योत्तर, कटहवा, सुंदरी, मोरपंखी प्रजातियां शामिल हैं। बाह के रेंजर ने बताया कि कठोर कवच वाले कछुओं का बाहरी कवच अस्थियों का बना होता है। ये कछुए शाकाहारी होते हैं। चंबल की सड़ी गली वनस्पतियों को खाकर पानी को साफ करते हैं।
वहीं, नरम कवच वाले कछुओं का बाहरी कवच मुलायम होता है। ये मांसपेशियों से बना होता है। ये मांसाहारी होते हैं। चंबल के मरे और सड़े गले जीव-जंतुओं को खाकर पानी को स्वच्छ रखते हैं। इनका स्वभाव आक्रामक होता है। शिकारियों पर हमलावर हो जाते हैं।
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