नई दिल्ली। यदि कोई संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति हिरासत में है तो फिर उसका जिम्मेदारी पर बने रहना ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अजय रस्तोगी ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को यह सलाह दी है। उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात नहीं है कि यदि कोई हिरासत में है, तब भी अपने पद पर बना रहे। उनकी यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है, जब भाजपा समेत एक वर्ग अरविंद केजरीवाल से इस्तीफे की मांग कर रहा है। उन्हें ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था और शराब घोटाले के केस में वह फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद हैं।
जस्टिस रस्तोगी ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि जनप्रतिनिधित्व कानून के सेक्शन 8 और 9 में अयोग्यता का प्रावधान है। इसमें कई बातें कही गई हैं।’ उन्होंने कहा कि दिल्ली में कैदियों के लिए बने कानून में भी कई बातें कही गई हैं। इसके तहत किसी भी कैदी तक कोई दस्तावेज सीधे तौर पर नहीं जा सकता। उसे पहले जेल अधीक्षक देखेंगे और फिर उन्हें कैदी तक भेजा जाएगा। संवैधानिक पद की शपथ में गोपनीयता भी शामिल है। ऐसे में दिल्ली में कैदियों के लिए बना यह नियम अरविंद केजरीवाल को जेल से ही सरकार चलाने और फाइलों पर साइन करने की परमिशन नहीं देता।
उन्होंने कहा कि यदि ऐसे नियम हैं तो फिर यह सही समय है कि अरविंद केजरीवाल फैसला लें कि उन्हें अपने पद पर बने रहना चाहिए या नहीं। आखिर इससे किसे फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा, ‘आप मुख्यमंत्री जैसे शीर्ष पद पर हैं, जो सार्वजनिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है। नैतिकता यह कहती है कि उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।
आप पिछले उदाहरण भी देख सकते हैं। जयललिता, लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं ने भी रिजाइन कर दिया था। इसके अलावा हेमंत सोरेन ने भी इस्तीफा दिया ही था। आप हिरासत में सीएम के तौर पर कोई फाइल मंगाकर साइन नहीं कर सकते। मेरा स्पष्ट मत है कि नैतिकता के मुताबिक इस्तीफा देना चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा कि सरकारी कर्मचारी को लेकर कानूनी एजेंसियों की ओर से गिरफ्तारी पर जो नियम हैं, वह भी यही कहते हैं। वह कहते हैं, ‘आप सरकारी सेवा को ही देखिए। यदि कोई सरकारी कर्मचारी 48 घंटे तक पुलिस की हिरासत में रहता है तो फिर उसे निलंबित कर दिया जाता है। कोई यह नहीं देखता कि आखिर केस की मेरिट क्या है। अब आप हिरासत में हैं और भगवान ही जानता है कि कब तक रहेंगे। यदि हिरासत में रहने के दौरान पद छोड़ने की बात संविधान में नहीं लिखी है तो फिर पद पर बने रहने का हक तो नहीं मिल जाता।’