नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि ED भी कानून से बंधा हुआ है। आम नागरिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कर सकता है। कोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 की धारा 50 के तहत निजी अस्पतालों के डॉक्टरों के बयान दर्ज करने के लिए जांच एजेंसी को फटकार लगाई।
दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट) विशाल गोग्ने ने कहा कि ईडी के लिए आम नागरिकों के खिलाफ पीएमएलए की धारा 50 के तहत कार्रवाई करने का कोई औचित्य नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि भारत जैसे लोकतंत्र में नागरिकों के पास अधिकार हैं। जज ने कहा, “एक सरकारी एजेंसी से नागरिक अधिकारों का समर्थक होने की उम्मीद की जाती है। अगर ऐसा नहीं करती है तो अदालत निश्चित रूप से ईडी के पूरी तरह से मनमाने कृत्य को उजागर करने में पीछे नहीं रहेगी।”
अदालत ने चेतावनी देते हुए कहा कि एक कि मजबूत नेता, कानून और एजेंसियां आम तौर पर उन्हीं नागरिकों को परेशान करती है जिनकी वे रक्षा करने की कसम खाते हैं। कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के अधिकार ईडी को मिली कानूनी ताकतों से पूरी तरह से ऊपर हैं।
क्या है मामला
बता दें कि कोर्ट ने 30 अप्रैल को व्यवसायी अमित कात्याल द्वारा दायर याचिका में एक आदेश पारित किया है। इस याचिका में अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ाने की मांग की गई थी। कात्याल पर रेलवे नौकरियों के लिए जमीन घोटाले के सिलसिले में पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के परिवार के सदस्यों के साथ लेनदेन करने का आरोप है।
9 अप्रैल को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनकी बेरिएट्रिक प्रक्रिया के लिए सर्जरी हुई थी। कात्याल के वकीलों ने ईडी द्वारा अपोलो और मेदांता अस्पताल के डॉक्टरों के बयान दर्ज करने पर कड़ी आपत्ति जताई।
ये डॉक्टर 5 फरवरी, 2024 को अंतरिम जमानत मिलने के बाद कात्याल का इलाज कर रहे थे। उनके वकील ने यह तर्क दिया गया कि यह चिकित्सा उपचार की गोपनीयता में घुसपैठ करने जैसा है जो कि आरोपी का मौलिक अधिकार है।
हालांकि कोर्ट ने कात्याल की अंतरिम जमानत बढ़ाने से इनकार कर दिया, लेकिन उसने ईडी के खिलाफ सख्ती दिखाई। कोर्ट ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि ईडी ने पीएमएलए की धारा 50 के तहत सरकारी अस्पतालों के किसी भी डॉक्टर से पूछताछ नहीं की है।