मुंबई। लगभग सात दशक पहले प्रदर्शित हुई ‘श्री 420’ साल 1955 की सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्म थी। सामाजिक सरोकार प्रधान इस फिल्म की कहानी में राज कपूर ने बंबई में फुटपाथ पर सोने वाले हजारों लोगों के अमानवीय जीवन की त्रासदी का जीवंत चित्रण किया।
जब धर्मानंद जैसे धूर्त मक्कारों और माया जैसी विलासी स्त्री की संगत में रहकर राज का ईमान डगमगाने लगता है और वह गरीबों को 100 रुपये में मकान बेचने की झूठी योजना का हिस्सा बन जाता है। अंत में विद्या (नर्गिस) राज की आंखें खोलती है और वह पुनः ईमानदारी के मार्ग पर लौट आता है।
बिनाका गीतमाला में मिला था पहला स्थान
फिल्म जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ की याद दिलाती है, जिसमें मनु श्रद्धा को छोड़कर इड़ा की ओर आकर्षित होता है। ठीक वैसे ही फिल्म में भी राज कपूर, विद्या का साथ छोड़कर माया का दामन थाम लेते हैं, लेकिन अंत में विजय भारतीय जीवन मूल्यों-सरलता, परिश्रम और ईमानदारी की होती है। इस फिल्म का गीत ‘मेरा जूता है जापानी’ ने संगीत काउंटडाउन रेडियो शो बिनाका गीतमाला में पहला स्थान हासिल करके अपनी लोकप्रियता सिद्ध की थी।
रुस में आज भी पसंद किया जाता है ‘श्री 420’ का ये गाना
शैलेंद्र के सुंदर शब्द, शंकर-जयकिशन के सुरीले साज, दिल छू लेने वाली मुकेश की मधुर आवाज और बड़े पर्दे पर राज कपूर के अद्भुत अभिनय के कारण यह गीत न सिर्फ देश में बल्कि तत्कालीन सोवियत संघ में भी खूब लोकप्रिय हुआ। यह गीत आज भी रूस में बहुत पसंद किया जाता है।
‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ पंक्ति वास्तव में वैश्विक सागर में भारतीयता के द्वीप सरीखी है। एक विशेष बात, इस फिल्म में गीतकार शैलेंद्र ने एक छोटी सी भूमिका भी निभाई थी। फिल्म में वह राज कपूर की नकली कंपनी के मुनीम बने थे।
जब हुई तर्क की लड़ाई
गीत सृजन की कला में निपुण होने के कारण ही जनकवि नागार्जुन शैलेंद्र को ‘गीतों का जादूगर’ कहते थे, तो वहीं सरल और सहज शब्दों में गहरी बात लिखने के कारण फणीश्वर नाथ रेणु उन्हें ‘कविराज’ कहते थे।
शैलेंद्र का मानना था कि अच्छे कवि को श्रोताओं की रुचियों का परिष्कार करके कवि धर्म का निर्वाह करना चाहिए। ‘श्री 420’ फिल्म का एक और गीत ‘प्यार हुआ इकरार हुआ है’ बहुत लोकप्रिय हुआ।
इस गीत के अंतरे में एक पंक्ति-‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियां’ पर फिल्म के संगीतकार शंकर-जयकिशन की जोड़ी के शंकर ने दस दिशाओं पर एतराज जाहिर किया था। शंकर का कहना था कि दिशाएं तो चार होती हैं। शंकर और शैलेंद्र में वाद-विवाद जब आक्रामक होने लगा तो शैलेंद्र ने राज कपूर और मन्ना डे की उपस्थिति में दसों दिशाओं के नाम लेकर उन्हें समझाया।
मन्ना डे ने शंकर से कहा कि गीत मैं और लता गा रहे हैं और हमें एतराज नहीं है और सबसे बड़ी बात दसों शब्द गीत के मीटर के अनुकूल है। आखिरकार शैलेंद्र के तर्क को शंकर ने स्वीकार किया और आज भी यह गीत दसों दिशाओं में गूंज रहा है।
कालजयी बन गए बोल
फिल्म ‘श्री 420’ के एक और लोकप्रिय गीत ‘दिल का हाल सुने दिलवाला, सीधी सी बात न मिर्च मसाला, कहके रहेगा कहनेवाला’ के माध्यम से करोड़ों भारतीयों के साथ-साथ शैलेंद्र ने आपबीती को भी बहुत मार्मिकता और व्यंग्यात्मक लहजे में चित्रित किया है।
सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए शैलेंद्र सामाजिक सरोकारों के प्रतिबद्ध कवि थे। उन्होंने 172 फिल्मों में 772 गीत लिखकर सिनेमा और साहित्य को समृद्ध किया। रेणु जी की कहानी पर ‘तीसरी कसम’ फिल्म का निर्माण करके सिनेमा की धरती पर साहित्य की गंगा को लाने का अद्भुत कार्य किया।
लोकप्रियता और कलात्मकता का अद्भुत मणिकांचन संयोग ही शैलेंद्र के गीतों को कालजयी बनाता है। ‘हर जोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है’ जैसा कालजयी गीत लिखने वाले शैलेंद्र की विराट काव्य प्रतिभा को राज कपूर जैसे महान अभिनेता ने पहचाना। उन्होंने ‘बरसात’ फिल्म में गीत लिखने का सुअवसर प्रदान किया। ‘बरसात’ के गीतों ने शैलेंद्र के जीवन में यश, धन और कीर्ति की बरसात कर दी।
उपन्यास में है ‘आवारा हूं’ का जिक्र
‘आवारा’ (1951) फिल्म की असाधारण वैश्विक सफलता (विशेष रूप से तत्कालीन सोवियत संघ और चीन आदि देशों में) ने राज कपूर को अंतरराष्ट्रीय अभिनेता के रूप में स्थापित किया और शैलेंद्र को वैश्विक गीतकार के रूप में पहचान मिली।
‘आवारा हूं’ गीत तत्कालीन सोवियत संघ में भारत की पहचान बन गया। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रूसी लेखक अलेक्जेंडर सोलजेनिस्तीन ने अपने उपन्यास ‘कैंसर वार्ड’ में शैलेंद्र के ‘आवारा हूं’ गीत का जिक्र किया है।