नई दिल्ली। नेटफ्लिक्स पर हाल ही में आई वेब सीरीज ‘IC 814 द कंधार हाईजैक’ (IC 814 Kandahar hijacking) पर काफी बवाल मचा है। फिल्म में आतंकियों के हिंदू नाम को लेकर भाजपा समेत कई संगठनों ने विरोध किया। इसके बाद नेटफ्लिक्स को सरकार ने नोटिस भी जारी कर दिया।
हिंदू नामों पर छिड़ा विवाद
इंडियन एयरलाइन्स के विमान को हाईजैक करने वाले आतंकियों ने अपने नाम हिंदू कोड नेम में रखे थे। वेब सीरीज में भी आतंकियों के हिंदू नाम (चीफ, बर्गर, डॉक्टर, भोला और शंकर) रखे गए हैं। फिल्म में आतंकियों के कहीं भी असली नामों का जिक्र नहीं था, जिसपर विवाद छिड़ा।
आखिरकार सरकार के नोटिस के बाद नेटफ्लिक्स ने कहा कि सीरीज के शुरू में ही डिस्क्लेमर दिखाया जाएगा। इसमें आतंकियों के असली नाम (इब्राहिम अतहर, शाहीद अख्तर सैयद, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जहूर इब्राहिम और सैयद शकीर) दिखाए जाएंगे।
दरअसल, 1999 में इंडियन एयरलाइन्स के विमान आईसी 814 को पाकिस्तानी आतंकियों ने हाईजैक कर लिया था, जिसे वो दिल्ली के बजाय अमृतसर होते हुए अफगानिस्तान के कंधार ले गए थे।
आखिर आतंकी विमान को कैसे हाईजैक कर ले गए और इसमें भारतीय सुरक्षाकर्मियों से कहां चूक हुई? इसपर खुफिया एजेंसी रॉ के तत्कालीन प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत ने बड़े खुलासे किए हैं।
निर्णय लेने में हुई गलती: पूर्व RAW चीफ
पूर्व RAW चीफ अमरजीत सिंह दुलत ने कंधार हाईजैकिंग मामले में ये बात स्वीकार की है कि भारत से निर्णय लेने में चूक हुई थी। उन्होंने कहा कि जब आतंकियों ने विमान को अमृतसर में उतारा तो सुरक्षाकर्मियों के पास ये सुनिश्चित करने का समय था कि विमान भारतीय क्षेत्र से बाहर न जाए लेकिन यहां चूक हो गई।
डील करना ही अंतिम विकल्प
दुलत ने आगे कहा कि जब विमान अमृतसर से निकल गया तो उनके पास आतंकियों से डील करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। उन्होंने कहा कि उस समय के लिए ये अच्छी डील थी। उन्होंने कहा कि निर्णय लेने में जो गलती हुई वो मैं पहले भी कई बार स्वीकार कर चुका हूं।
खून खराबे से डर रहे थे सभी
दुलत ने कहा कि उनकी उस समय पंजाब के तत्कालीन डीजीपी सरबजीत सिंह के साथ लंबी बातचीत हुई। सरबजीत सिंह ने कहा कि वो केपीएस गिल नहीं हैं, जो अपनी नौकरी दांव पर लगा दे।
डीजीपी ने ये भी बताया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी अमृतसर में खून-खराबा नहीं चाहते थे। हालांकि, डीजीपी ने ये कहा था कि अगर उन्हें दिल्ली से साफ संकेत मिलते तो फैसला हो जाता, लेकिन उस समय की वाजपेयी सरकार भी खून खराबा नहीं चाहती थी।
आतंकियों के बदले छूटे थे यात्री
बता दें कि विमान में क्रू मेंबर समेत 179 यात्री सवार थे। इनको बचाने के लिए भारत सरकार और तालिबान में 28 दिसंबर 1999 को डील हुई थी। समझौते के तहत मौलाना मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक जरगर को रिहा करने की तालिबान की मांग भारत ने मानी थी।
तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह तीनों आतंकियों के साथ कंधार पहुंचे थे। कंधार पहुंचने के बाद पाकिस्तान खुफिया एजेंसी ISI के अधिकारी तीनों आतंकियों के रिश्तेदारों साथ लाए थे, जिनकी पहचान की गई। इसके बाद सभी यात्री सुरक्षित वापस लाए गए।