तिरुवनंतपुरम। केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि नाबालिग के समक्ष यौन संबंध बनाना या शरीर के कपड़े उताकर नग्न होगा बच्चे का यौन उत्पीड़न है। यह कृत्य यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दंडनीय है।
न्यायमूर्ति ए बदरुद्दीन ने यह फैसला एक व्यक्ति की याचिका पर सुनाया, जिसमें उसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), पॉक्सो अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम के तहत विभिन्न अपराधों के लिए उसके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने का अनुरोध किया था।
व्यक्ति पर आरोप था कि उसने कमरे का दरवाजा बंद किए बिना एक लॉज में महिला से सेक्स किया। इस महिला का नाबालिग बेटा यह सब देख रहा था। जब यह बात शख्स को पता चली तो उसने बच्चे की पिटाई की।
आरोपी ने याचिका में किया यह दावा
मामला पुलिस तक पहुंचा। आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। उसने हाई कोर्ट में याचिका करके खुद को बेकसूर बताया। उसने बच्चे को उसके सेक्स के दौरान देखने को गलत बताते हुए नाबालिग पर आरोप लगाया। उसने याचिका में दावा किया कि उसके खिलाफ कोई भी अपराध नहीं बनता। इस पर हाई कोर्ट ने आरोपी को फटकार लगाई।
केरल हाई कोर्ट ने क्या कहा
हाई कोर्ट ने कहा कि जब कोई व्यक्ति किसी बच्चे को अपना निर्वस्त्र शरीर दिखाता है, तो यह बच्चे पर यौन उत्पीड़न करने के इरादे से किया गया कृत्य है। अदालत ने कहा कि इसलिए, पॉक्सो अधिनियम की धारा 11(आई) (यौन उत्पीड़न) के साथ धारा 12 (यौन उत्पीड़न के लिए दंड) के तहत दंडनीय अपराध लागू होगा।
हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में, आरोप यह है कि आरोपिओं ने निर्वस्त्र होने के बाद, यहां तक कि कमरे को बंद किए बिना यौन संबंध बनाए। कमरे का दरवाजा खुला था और नाबालिग ने उन्हें सेक्स करते हुए देखा।
HC ने कहा, ‘इस प्रकार, प्रथम दृष्टया, इस मामले में याचिकाकर्ता (आरोपी व्यक्ति) के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की धारा 11(आई) एवं 12 के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप बनता है।’
बच्चे की मां पर भी केस
अदालत ने कहा कि चूंकि व्यक्ति ने बच्चे की पिटाई की और नाबालिग की मां ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की, इसलिए धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाने के लिए सजा) और 34 (समान इरादा) के तहत भी अपराध किया गया।
हाई कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति को पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 323 और 34 के तहत अपराधों के लिए मुकदमे का सामना करना होगा।