भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में जहरीले कचरे का निपटान नहीं हो पाया है, जिसको लेकर मप्र हाईकोर्ट ने अधिकारियों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने बुधवार को पूछा कि क्या वे ‘एक और त्रासदी का इंतजार’ कर रहे हैं।
इसके साथ ही कोर्ट ने धार जिले में रखे 350 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को चार हफ्तों में निपटाने का आदेश दिया है। अगर आदेश का पालन नहीं हुआ, तो मुख्य सचिव और गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के प्रमुख सचिव को 6 जनवरी, 2025 को कोर्ट में हाजिर होना होगा।
कचरा निपटान के लिए 2004 से चल रहा मामला
यह मामला गैस कार्यकर्ता आलोक प्रताप सिंह की तरफ से दायर याचिका को लेकर चल रहा है। कोर्ट में मामला 2004 से चल रहा है लेकिन अभी तक कचरा निपटान की शुरुआती प्रक्रिया ही चल रही है। कोर्ट ने इस देरी पर चिंता जताई है।
इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि भोपाल के लोगों की सुरक्षा के लिए कारखाने से जहरीले कचरे को हटाना, MIC और सेविन संयंत्रों को बंद करना, आसपास की मिट्टी और भूजल से दूषित पदार्थों को हटाना बहुत ज़रूरी है। न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि गैस त्रासदी ठीक 40 साल पहले इसी दिन हुई थी।
अवमानना की कार्रवाई को लेकर चेतावनी दी
हाई कोर्ट ने संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी है अगर उसके आदेश के पालन में कोई बाधा उत्पन्न होती है। कोर्ट ने 2005 में दिए गए अपने पुराने आदेशों का भी हवाला दिया।
न्यायालय ने कहा कि कुछ कदम तो उठाए गए हैं लेकिन वे नाकाफी हैं। 20 साल बीत जाने के बाद भी, प्रक्रिया अभी शुरुआती चरण में है। इस पर न्यायालय ने गहरी नाराजगी व्यक्त की।
हजारों लोगों की हुई थी मौत
भोपाल गैस त्रासदी एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना थी जो 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को हुई थी। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के कीटनाशक संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था।
हजारों लोग मारे गए थे और लाखों लोग प्रभावित हुए थे। इस त्रासदी का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। दूषित पानी और मिट्टी के कारण, लोग आज भी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।
कोर्ट ने अपनाया सख्त रूख
कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए सख्त रुख अपनाया है। न्यायालय ने साफ कर दिया है कि वह इस मामले में और देरी बर्दाश्त नहीं करेगा। जहरीले कचरे का जल्द से जल्द निपटान भोपाल के लोगों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है।
न्यायालय का यह आदेश पीड़ितों के लिए एक उम्मीद की किरण है। उन्हें उम्मीद है कि आखिरकार उन्हें न्याय मिलेगा। न्यायालय के आदेश से प्रशासन पर दबाव बढ़ेगा और उम्मीद है कि जल्द ही जहरीले कचरे का निपटारा होगा।
अभी तक जो हुआ है वह नाकाफी
कोर्ट ने कहा कि हमने 30 मार्च, 13 मई और 23 जून, 2005 को पारित आदेशों का अवलोकन किया है और हाल ही में, 11 सितंबर, 2024 को भी। हालांकि कुछ कदम उठाए गए हैं, वे न्यूनतम हैं और सराहनीय नहीं हैं क्योंकि याचिका 2004 की है और लगभग 20 साल बीत चुके हैं लेकिन प्रतिवादी निपटान प्रक्रिया शुरू करने के पहले चरण में हैं।
इसके साथ ही कोर्ट ने यहा कि यह वास्तव में एक दुखद स्थिति है क्योंकि संयंत्र स्थल से जहरीले कचरे को हटाना, MIC और सेविन संयंत्रों को बंद करना, और आसपास की मिट्टी और भूजल में फैले दूषित पदार्थों को हटाना भोपाल निवासियों की सुरक्षा के लिए सर्वोपरि आवश्यकता है। संयोग से, गैस आपदा ठीक 40 साल पहले इसी तारीख को हुई थी।