प्रयागराज। महाकुंभ 2025 में मॉडल हर्षा रिछारिया को सबसे खूबसूरत साध्वी कहकर प्रचारित किया गया। सोशल मीडिया पर साध्वी की तस्वीरें और वीडियो जमकर शेयर किए गए।
हर्षा रिछारिया की कुंभ में मौजूदगी को लेकर साधु और संत समाज दो धड़ों में बंट गया है। जहां कुछ संत हर्षा रिछारिया की मौजूदगी का विरोध कर रहे हैं, वहीं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP) हर्षा के पक्ष में खड़ा हो गया है।
इस मुद्दे पर गरमागरम बहस छिड़ गई है। यह विवाद तब और बढ़ गया जब ABAP के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने घोषणा की कि वे 29 जनवरी को दूसरे अमृत स्नान पर निरंजनी अखाड़े के रथ में हर्षा को संगम ले जाएंगे।
महंत रवींद्र पुरी ने कहा, ‘वह हमारी बेटी है और उत्तराखंड का गौरव है। मैंने उससे कहा कि वह मौनी अमावस्या पर पूरे शाही और भव्य तरीके से रथ पर बैठकर पवित्र स्नान करेगी और देवी की तरह स्नान करेगी। मैंने उससे अनुरोध किया कि वह यहीं रहे और कुंभ में अपना प्रवास पूरा करे।’
बेटी को पिता का साथ मिल जाए तो और क्या चाहिए
इस बीच, हर्षा रिछारिया ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘मैं अपने महाराज जी के घर आई हूं। अगर वह मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं, तो मुझे किसी और सहारे की जरूरत नहीं है।
अगर एक बेटी को उसके पिता का साथ मिल जाए, तो उसे और क्या चाहिए? जैसा कि मैंने पहले कहा, मैं यहां सनातन धर्म के बारे में जानने, उससे जुड़ने और समाज में जागरूकता फैलाने के लिए आई हूं।’
संत समुदाय के लिए अपमानजनक: स्वामी आनंद स्वरूप
स्वामी आनंद स्वरूप ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर सनातन धर्म की रक्षा की जिम्मेदारी का हवाला देते हुए महंत रवींद्र पुरी से फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया।
काली सेना के प्रमुख आनंद स्वरूप का कहना है- ‘मेरा विचार बहुत सरल था। एक मॉडल को अन्य संतों के साथ अमृत स्नान में भाग नहीं लेना चाहिए और न ही ले सकती है, क्योंकि उसने भगवा पहन रखा है। यह संत समुदाय के लिए अपमानजनक है, और हम निश्चित रूप से ऐसा होने से रोकेंगे। अब यह हमेशा के लिए तय हो जाना चाहिए।’
सबसे खूबसूरत साध्वी का मिला टैग
बता दें कि उत्तराखंड की 30 वर्षीय मॉडल हर्षा रिछारिया ने महाकुंभ मेले में पहले अमृत स्नान (14 जनवरी) के दिन रथ पर सवार होकर लोगों का ध्यान खींचा। जल्द ही, उनके वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो गईं। कुछ अनुयायियों ने उन्हें ‘सबसे खूबसूरत साध्वी’ बताया। हालांकि, उन्हें जिस तरह का लोकप्रियता मिल रही है, उसे साधुओं के एक वर्ग ने नापसंद किया है।