मुंबई। महाराष्ट्र में नई सरकार बनने के बाद राज्य की राजनीति में बड़े बदलाव की सुगबुगाहट बनी है। बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति के पार्टनर एकनाथ शिंदे ने शिवसेना (UBT) में एक और विभाजन की तैयारी में जुटे हैं। इसके लिए उन्होंने ऑपरेशन टाइगर शुरू किया है।
शिवसेना का चुनाव चिन्ह धनुष-बाण उनके साथ है और वह खुले तौर पर उद्धव सेना पर निशाना साध रहे हैं। हाल ही में एक भाषण के दौरान उन्होंने दावा किया कि UBT में सिर्फ बाप-बेटे ही बचेंगे यानी उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे।
शिंदे ने यह अभियान निकाय चुनाव से पहले शुरू किया है और इसमें उन्हें शुरुआती सफलता भी मिली है। मुंबई, नागपुर, नासिक, कोल्हापुर, शाहपुर, भिवंडी, मीरा भायंदर और कल्याण में कई नेता उद्धव गुट को छोड़कर शिंदे सेना में शामिल हो गए।
ठाकरे समर्थकों को पाले में लाने की कोशिश
एकनाथ शिंदे ने करीब ढाई साल पहले बगावत की और बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। बगावत के बाद सत्ता की चाह में विधायक-सांसद तो आए, मगर जमीन पर पुराने कार्यकर्ताओं का साथ नहीं मिला। जिलों की शाखा कार्यालयों पर अभी भी UBT समर्थकों का कब्जा है। लोकसभा चुनाव में इसका असर भी नजर आया।
विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने समर्थक कार्यकर्ताओं के साथ मेहनत की और महायुति के साथ एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने अकेले दम पर ही 57 सीटों पर जीत हासिल कर ली। इस जीत के बाद असली चुनौती बाकी है, क्योंकि निकाय चुनाव में बीजेपी ने बिना गठबंधन मैदान में उतरने का फैसला किया है।
निकाय चुनाव में उद्धव को पटखनी देने की तैयारी
राज्य में 27 नगर निगमों, 243 नगर परिषदों, 37 नगर पंचायतों, 26 जिला परिषदों और 289 पंचायत समितियों के चुनाव होने हैं। निकायों में जीत के लिए जरूरी है कि ठाकरे परिवार के समर्थक माने जाने वाले नेता और कार्यकर्ता शिंदे की शिवसेना का हिस्सा बने।
अगर शिंदे सेना मुंबई, ठाणे जैसे नगर निगमों में बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता हासिल कर लेगी तो उद्धव सेना को हौसले पस्त हो जाएंगे। BMC पर 1985 से ही ठाकरे परिवार की शिवसेना का कब्जा रहा है। BMC चुनाव में अगर शिंदे सेना मजबूत होती है तो बीजेपी के साथ मिलकर ठाकरे परिवार को सबसे बड़ी नगरपालिका से छुट्टी कर सकती है।
ग्राउंड लेवल पर तोड़फोड़ के लिए आभार यात्रा!
एकनाथ शिंदे के ऑपरेशन टाइगर का खुलासा बाल ठाकरे की पुण्यतिथि वाले दिन 23 जनवरी को हुआ। उद्धव ठाकरे की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में UBT के कई सांसद, विधायक और शाखा प्रमुख नजर नहीं आए।
UBT की ओर से सफाई दी गई कि अधिकतर सांसद और विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र में व्यस्त थे, मगर यह उद्धव ठाकरे को टेंशन जरूर दे गया। गैरहाजिर रहने वाले नेताओं ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। उसी दिन एकनाथ शिंदे के करीबी मंत्री उदय सामंत ने दावा किया कि मिशन टाइगर शुरू हो चुका है।
उन्होंने उद्धव गुट छोड़ने वाले नेताओं का नाम का खुलासा तो नहीं किया मगर बता दिया कि शिंदे एक बार फिर उद्धव ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। 24 फरवरी को एकनाथ शिंदे ने राज्य में आभार यात्रा शुरू की, जो इस ऑपरेशन का ही हिस्सा माना जाता है।
उद्धव के भरोसेमंद शिंदे के खेमे में आए
UBT नेताओं को अपने पाले में लाने के लिए एकनाथ शिंदे जिस तरह मेहनत कर रहे हैं, उसका फायदा दिखने लगा है। 27 जनवरी को मुंबई, नासिक, कोल्हापुर, जलगांव और सांगली में सैकड़ों उद्धव समर्थक नेताओं और हजारों कार्यकर्ताओं ने शिवसेना (शिंदे) का दामन थाम लिया।
पाला बदलने वालों में सबसे बड़ा नाम आसराम बोराडे का है, जो 19 साल तक शिवसेना के जिला प्रमुख रहे। बोराडे ने पार्टी बदलने के बाद एक बड़ा बयान दिया।
उन्होंने कहा कि जब आप सत्ता में बैठे लोगों के साथ होते हैं तो कई सवाल आसानी से हल हो जाते हैं। एकनाथ शिंदे भले ही सीएम नहीं हैं, मगर सत्ता में मजबूत स्थिति में हैं।
पंच-सरपंच जैसे UBT समर्थकों ने पाला बदला
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, एकनाथ शिंदे ने न सिर्फ शहरों में बल्कि गांवों में भी UBT को झटका दिया है। छत्रपति संभाजी नगर में UBT के बड़े नेता और उनकी पत्नी शिंदे सेना में शामिल हो गए।
शाहपुर, भिवंडी, कल्याण के गांवों में पूर्व सरपंच, उपसरपंच, पंचायत समितियों के सदस्य और जिला परिषद के सदस्यों ने पाला बदला। मुंबई में उद्धव गुट की महिला विंग की प्रमुख रजुल पटेल शिंदे सेना में शामिल हुईं। मीरा भायंदर में पूर्व डिप्टी मेयर प्रवीण पाटिल समर्थकों के साथ ठाकरे की पार्टी छोड़कर चले गए।
निकाय चुनाव हारे तो उद्धव को लगेगा बड़ा झटका
शिवसेना (UBT) की प्रवक्ता सुषमा अंधारे का कहना है कि पार्टी के कुछ कट्टर समर्थक छोड़कर चले गए हैं और इससे स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि दल बदलने वालों में ज्यादातर सत्ता के भूखे थे, इसीलिए उन्होंने विपक्ष में रहते हुए अपने लोगों के लिए लड़ने के बजाय सत्ता में शामिल होना पसंद किया। शिंदे के अभियान के बाद उद्धव ठाकरे ने 24 जनवरी को पार्टी के जिला प्रमुखों के साथ मुलाकात की।
मीटिंग में ठाकरे ने कहा कि जो कोई भी पार्टी छोड़ना चाहता है, वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है। मुझे वफादारों के साथ अपनी पार्टी चलाने का साहस है। मगर निकाय चुनाव में यूबीटी पिछड़ी तो ऑपरेशन टाइगर को वह भूल नहीं पाएंगे।