श्रीनगर। जिया-उर-रहमान उर्फ नदीम उर्फ अबू कताल उर्फ कताल सिंधी की मौत लश्कर-ए-तैयबा पर बड़ा आघात है। कताल वर्ष 2002-2004 तक राजौरी-पुंछ व उत्तरी कश्मीर में कुछ जगहों पर सक्रिय रहा था।
2008 में मुंबई हमले (26/11 Mumbai Attack) के बाद जब पाकिस्तान सरकार को हाफिज सईद और जकी उर रहमान लखवी समेत लश्कर के प्रमुख कमांडरों पर लगाम लगानी पड़ी तो सईद ने अबु को गुलाम जम्मू कश्मीर में खुरेटा कोटली और नकिया व जंदरूट स्थित लश्कर के ट्रेनिंग कैंपों की जिम्मेदारी सौंपी थी।
जम्मू-कश्मीर में नेटवर्क से संपर्क में था अबु
जम्मू-कश्मीर में कुछ वर्ष तक सक्रिय रहने के बाद अबु वापस पाकिस्तान लौट गया था, लेकिन उसने राजौरी-पुंछ में स्थानीय नेटवर्क के साथ लगातार संवाद बनाए रखा जिसका उसने वर्ष 2020 में पूरा लाभ लेना शुरू किया।
उसने पुंछ जिले के मोहरा गुरसाई में अपने दो खास ओवरग्राउंड वर्करों निसार अहमद उर्फ हाजी निसार और मुश्ताक हुसैन चाचा की मदद से न सिर्फ गुलाम जम्मू-कश्मीर से जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की सुरक्षित घुसपैठ कराई, बल्कि भाटाधुलियां औेर ढांगरी हमले को भी अंजाम दिया।
रियासी हमले का मास्टर माइंड था अबु कताल
उसके भेजे आतंकियों ने रियासी में श्री माता वैष्णो देवी के दर्शनार्थ आए श्रद्धालुओं की बस पर हमला किया था। ढांगरी, राजौरी में पहली जनवरी 2023 को आतंकियों ने दो बच्चों समेत सात लोगों की हत्या की थी।
निसार और मुश्ताक जेल में हैं। ढांगरी हमले के संदर्भ में एनआईए द्वारा दायर आरोपपत्र में अबू कताल और साजिद जट्ट को भी आरोपित बनाया गया है।
कताल ही बढ़ा रहा था हाफिज के आतंकी खेल को
जम्मू कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि अबू लश्कर के उन कमांडरों में शामिल था, जिन्हें हाफिज, लखवी, मकई जैसे कमांडरों के बाद दूसरी पंक्ति में अग्रणी माना जाता है।
हाफिज ने गुलाम जम्मू कश्मीर, सिंध और पाकिस्तानी पंजाब में लश्कर के महत्वपूर्ण ट्रेनिंग कैंपों की जिम्मेदारी अपने दामाद वलीद के बाद अगर किसी को सौंपी है तो वह अबू कताल सिंधी उर्फ जिया उल रहमान को ही सौंपी।
इससे उसकी हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। बीते पांच वर्ष के दौरान लश्कर के पकड़े गए आतंकियों, ओवरग्राउंड वर्करों ने पूछताछ में कताल, लंगरियाल, जट्ट, कासिम, खालिद जैसे कमांडरों का नाम लिया है, जिससे पता चलता है कि यही हाफिज के आतंकी खेल को आगे बढ़ा रहे हैं।
टीआरएफ के हैंडलरों की जो बातचीत रिकार्ड की गई है, उसमें भी सज्जाद के बाद अबू का नाम कई बार आया है। इसलिए उसकी मौत से राजौरी-पुंछ में जहां लश्कर के आतंकियों की घुसपैठ व गतिविधियों में कमी आना तय है।