वाराणसी। पर्यावरण संकट की वजह से दुनिया के सामने इलेक्ट्रिक वाहन मजबूत विकल्प बने हैं। भले ही सरकार सब्सिडी और सुविधाओं के जरिए जनता को ई-वाहनों से जोड़ने में जुटी है, लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों में रेंज की समस्या बड़ी चुनौती है।
यह ई-वाहनों की व्यापक स्वीकृति को प्रभावित कर रहा है। हालांकि, यह समस्या वाहनों की बैटरी की सीमित क्षमता और चार्जिंग की धीमी गति की देन है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के भौतिक विज्ञानियों ने रेंज की समस्या के समाधान के लिए बेहतर प्रयास किया है।
भौतिकी विभागाध्यक्ष डा. राजेंद्र कुमार सिंह के नेतृत्व में आधा दर्जन शोधार्थियों ने औद्योगिक कचरे में मिलने वाले सल्फर की मदद से रूम टेंप्रेचर सोडियम सल्फर बैटरी तैयार की है। लैब में क्वायन सेल का माडल बनाया है।
इस बैटरी की लागत सोडियम आयन बैटरी और लीथियम आयन बैटरी की तुलना में 35 प्रतिशत कम होगी। बड़े बैटरी पैक के रूप में वाहनों में प्रयोग किए जाने की स्थिति में यह सल्फर बैटरी एक बार चार्ज होने पर करीब 1300 किलोमीटर का रेंज देने में सक्षम होगी।
CPRI बेंगलुरु से हुआअनुबंध
डा. राजेंद्र ने बताया कि रूम टेम्परेचर सोडियम सल्फर बैटरी सोडियम आयन बैट्री का बेहतर विकल्प है। प्रोजेक्ट के वृहद अनुसंधान और विकास के लिए ऊर्जा मंत्रालय की कंपनी CPRI (सेंट्रल पावर रिसर्च इंस्टीट्यूट) बेंगलुरु से अनुबंध हुआ है।
दो वर्ष में प्रोजेक्ट को पूर्ण करने का लक्ष्य तय हुआ है। तकनीक हस्तांतरण के उपरांत बैटरी का थोक उत्पादन होगा। सोडियम आयन बैटरी की डिस्चार्ज क्षमता 170 से 175 मिली एंपियर हावर प्रति ग्राम होती है, जबकि ऊर्जा घनत्व 150 से 180 वाट आवर प्रति किलोग्राम होता है।
विभाग के लैब में ट्रायल के दौरान रूम टेंप्रेचर सोडियम सल्फर बैटरी की डिस्चार्ज क्षमता 1300 से 1400 मिली एंपियर आवर प्रति ग्राम और ऊर्जा घनत्व 1274 वाट हावर प्रति किलोग्राम मिला है।
सोडियम आयन बैट्री की डिस्चार्ज क्षमता कम होती है क्योंकि यह कैथोड पर निर्भर करता है। ऊर्जा घनत्व भी कम होने से इन बैट्रियों की रेंज भी कम होती है। चार पहिया वाहन में ऐसी बैट्रियों का बड़ा पैक एक बार चार्जिंग पर ढाई सौ से तीन सौ किमी का रेंज कवर करतीं हैं।
उधर, सल्फर बैटरी काफी सस्ती होती है, डिस्चार्ज क्षमता और ऊर्जा घनत्व अधिक होेने के कारण वाहनों की रेंज क्षमता 1200 से 1300 किलोमीटर होगी।
यह बैटरी सोडियम और सल्फर के बीच रासायनिक प्रतिक्रिया पर आधारित है। कम तापमान पर भी यह काम कर सकती है, जो विभिन्न अनुप्रयोगों में उपयोगी बनाती है। पर्यावरण अनुकूलता भी खास पहलू है।
लैब में दूर की जा रहीं कई चुनौतियां, मिलेंगे सकारात्मक परिणाम
डा. राजेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि देश में सल्फर प्रचुरता में औद्योगिक कचरे के रूप में उपलब्ध हैं। कोयला, तेल और गैस के जलने पर सल्फर गैस का उत्पादन होता है। सल्फर बैटरी को सिलिका मैट्रिक्स, कुछ कैटालिसिस व इलेक्ट्रोलाइट से बनाया जाता है, इससे लागत कम आएगी और क्षमता अधिक होगी।
हालांकि, बैटरी निर्माण में कुछ तकनीकी चुनौतियां भी हैं, पाली सल्फाइड डिजुलेशन शटल इफेक्ट और कैथोड में शार्ट सर्किट जैसी बाधाओं को दूर करने का प्रयास हो रहा है।