मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग केवल अपनी खूबसूरत वादियों और ठंडी आबोहवा के लिए ही नहीं, बल्कि अपने अनोखे और लाजवाब खान-पान के लिए भी जानी जाती है। शिलॉन्ग से दूर जाने के बाद अगर किसी एक चीज़ की सबसे ज़्यादा याद आती है, तो वह हैं “द बिग शिलॉन्ग मोमोज़” — जो स्वाद और आकार दोनों में ही बेमिसाल हैं।
हथेली जितने बड़े और ऊँचे ये मोमोज़ सामान्य मोमोज़ से बिल्कुल अलग अनुभव देते हैं। इन्हें चाकू से काटना मानो पहाड़ी को फावड़े से काटने जैसा लगता है। जैसे ही मोमो कटता है, उसके अंदर भरा मसालेदार और रसदार स्टफिंग बाहर की ओर फिसलता है। पहला निवाला मुंह में जाते ही स्वाद का ऐसा विस्फोट होता है जिसमें मांसल, तीखा और रसीला स्वाद एक साथ महसूस होता है।
इन बड़े मोमोज़ की सबसे खास बात यह है कि इनमें कीमा नहीं बल्कि टुकड़ों में भरा स्टफिंग होता है। चिकन या पोर्क के बड़े टुकड़े, कटे हुए प्याज़ और पत्तागोभी—हर सामग्री का स्वाद साफ़ महसूस होता है। यही वजह है कि चंक्स वाले मोमोज़, कीमे वाले मोमोज़ से कहीं बेहतर माने जाते हैं। महानगरों में मिलने वाले कई मोमोज़ में कीमे के नाम पर सोया या न्यूट्रीला मिलाने की शिकायतें भी सामने आती रही हैं, जो स्वाद को धोखा देती हैं।
शिलॉन्ग में सबसे बेहतरीन बिग मोमो का ज़िक्र हो और स्पॉट कम्युनिकेशंस (Spot Com) का नाम न आए, ऐसा हो नहीं सकता। सेंट एंथनी कॉलेज के ठीक सामने स्थित यह छोटा सा कैफे 2004–05 के दौर में मात्र 12 रुपये में एक बड़ा, भाप से भरा गर्म मोमो परोसता था। एक मोमो इतना भरपूर होता था कि पूरे दिन की ऊर्जा दे देता था। उसका स्वाद और यादें आज भी लोगों के ज़हन में ताज़ा हैं।
जो लोग अब तक बिग शिलॉन्ग मोमो का स्वाद नहीं चख पाए हैं, उनके लिए शहर में कुछ मशहूर जगहें आज भी इस स्वाद को जिंदा रखे हुए हैं—
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द वोक रेस्टोरेंट, नॉन्गरिमबह
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बैम्बू हट, पुलिस बाज़ार
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शांगरीला, लाइटुमखराह
शिलॉन्ग का यह बिग मोमो केवल एक व्यंजन नहीं, बल्कि शहर की खाद्य संस्कृति और यादों से जुड़ा एक स्वादिष्ट अनुभव है, जिसे हर फूड लवर को एक बार ज़रूर आज़माना चाहिए।

