एक वक्त था जब 26 मई का दिन भारतीय कुश्ती प्रेमियों के लिए कभी जश्न का मौका हुआ करता था। वजह भी खास थी, इसी दिन जन्मे थे देश के सबसे कामयाब पहलवानों में शुमार सुशील कुमार। एक ऐसा नाम, जिसने मिट्टी के अखाड़े से निकलकर ओलंपिक जैसे बड़े मंच पर तिरंगा लहराया। लेकिन अफसोस कि वही नाम अब एक विवाद और हत्याकांड के साथ जुड़ चुका है। आज सुशील कुमार अपना जन्मदिन सलाखों के पीछे मना रहे हैं।
अखाड़े से ओलिंपक मेडल जीतने का मुश्किल सफर सुशील कुमार का जन्म 26 मई 1983 को दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में एक साधारण परिवार में हुआ था। बचपन से ही कुश्ती के प्रति झुकाव रखने वाले सुशील ने 14 साल की उम्र में छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग शुरू की। संघर्ष और मेहनत के दम पर वे जल्द ही देश के टॉप पहलवानों में गिने जाने लगे।
साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक में 66 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर उन्होंने इतिहास रचा। इसके बाद 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल और फिर 2012 लंदन ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर वे भारत के पहले ऐसे रेसलर बने, जिसने दो ओलंपिक मेडल अपने नाम किए। ओलंपिक में उनकी इस कामयाबी ने उन्हें भारतीय खेल जगत का सितारा बना दिया।
उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, राजीव गांधी खेल रत्न और पद्मश्री जैसे बड़े सम्मानों से नवाजा गया। सुशील कुमार एक रोल मॉडल बन चुके थे, जिनकी मिसाल हर युवा पहलवान के लिए दी जाती थी, लेकिन साल 2021 में सुशील कुमार की जिंदगी में उस समय एक बड़ा मोड़ आया जब उनका नाम एक जूनियर रेसलर की मौत से जुड़ गया।
जूनियर रेसलर की मौत से जुड़ा नाम दरअसल, मई 2021 में दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में हुए एक झगड़े में जूनियर रेसलर की मौत हो गई। इस मामले में सुशील कुमार को मुख्य आरोपी बनाया गया। दिल्ली पुलिस ने उन्हें कई दिनों की तलाश के बाद गिरफ्तार किया। उनके खिलाफ हत्या, आपराधिक साजिश और अपहरण जैसे गंभीर आरोप लगे। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। एक ओलंपियन के इस तरह अपराध में शामिल होने से हर कोई हैरान था। कभी भारत का गौरव कहे जाने सुशील अब सलाखों के पीछे अपना जीवन बिता रहे हैं। आज 26 मई को उनके जन्मदिन पर कुश्ती प्रेमी उन्हें याद कर रहें है, कोई एक महान पहलवान के तौर पर, तो कोई एक ऐसी मिसाल के रूप में, जो बताती है कि सफलता के साथ संयम और जिम्मेदारी भी जरूरी है।