महाराष्ट्र में भाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हम हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं हैं। हम देश की किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘पलटूराम’ बताया और कहा कि उनकी सरकार ने ही हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने की सिफारिश की थी।
हम हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं: फडणवीस मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा, “हम हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं हैं। हम देश की किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हैं।” उन्होंने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पिछली सरकार पर पलटवार करते हुए कहा, “जब वे (उद्धव ठाकरे) सत्ता में थे, तब उन्होंने हिंदी पढ़ाना अनिवार्य कर दिया था, जिसकी सिफारिश रघुनाथ माशेलकर समिति ने की थी… उनके (उद्धव ठाकरे) लिए ‘पलटूराम’ ही सही नाम है।” फडणवीस ने आगे बताया कि उनकी सरकार ने इस मामले पर एक समिति का गठन किया है, जो पूरे मुद्दे का अध्ययन करेगी और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
सरकार ने रद्द किया फैसला
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने रविवार को राज्य के स्कूलों में कक्षा 1 से हिंदी भाषा को शामिल करने के खिलाफ बढ़ते विरोध के बीच ‘त्रि-भाषा’ नीति पर जारी सरकारी आदेश को रद्द कर दिया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मुद्दे पर आगे की राह सुझाने और नीति के कार्यान्वयन के लिए शिक्षाविद नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक नई समिति के गठन की घोषणा की है। यह घोषणा राज्य विधानमंडल के मानसून सत्र की पूर्व संध्या पर की गई।
मामले पर नई समिति गठित
मुख्यमंत्री फडणवीस ने बताया कि राज्य मंत्रिमंडल ने अप्रैल और जून में जारी दो सरकारी आदेशों को वापस लेने का निर्णय लिया है, जो कक्षा 1 से ‘त्रि-भाषा’ नीति के कार्यान्वयन से संबंधित थे। अब डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी, जो इस नीति के कार्यान्वयन की सिफारिशें प्रस्तुत करेगी। डॉ. जाधव, जो योजना आयोग के पूर्व सदस्य और एक पूर्व कुलपति रह चुके हैं, की रिपोर्ट के आधार पर सरकार नया फैसला लेगी। समिति को इस मुद्दे का अध्ययन करने और अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है। समिति के अन्य सदस्यों के नामों की घोषणा जल्द ही की जाएगी।
क्या है मामला?
दरअसल, फडणवीस सरकार ने 16 अप्रैल को एक सरकारी आदेश जारी किया था, जिसमें अंग्रेजी और मराठी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाया गया था। हालांकि, व्यापक विरोध के बाद 17 जून को एक संशोधित आदेश जारी किया गया, जिसमें हिंदी को वैकल्पिक भाषा कर दिया गया था। विपक्षी दलों जैसे शिवसेना (उबाठा), मनसे और राकांपा (एसपी) ने इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए इसे महाराष्ट्र में हिंदी को “थोपा जाना” करार दिया था।