हलाल: एएमयू के धार्मिक शिक्षा विभाग विद्वान ने बताया इसका अर्थ, बोले- यह है शरीयत का हिस्सा

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हलाल: एएमयू के धार्मिक शिक्षा विभाग विद्वान ने बताया इसका अर्थ, बोले- यह है शरीयत का हिस्सा

मुख्यमंत्री की हलाल सर्टिफिकेशन वाले उत्पादों को न खरीदने की अपील पर उठ रहे विवाद के बीच अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के धार्मिक शिक्षा विभाग के विद्वान कहते हैं कि यह शरीयत का हिस्सा है। हलाल का अर्थ है वैद्य, यानि जो स्वीकार्य तरीके और वस्तुएं हैं जिनका उपयोग ही हलाल है।

दीनियात विभाग के प्रो. रिहान अख्तर कहते हैं कि सबसे पहले तो हलाल के बारे में समझना जरूरी है, जिस काम को अल्लाह और उसके रसूल ने करने की इजाजत दी है, वह हलाल है, जिसकी इजाजत नहीं दी है वह हराम है।

उन्होंने बताया कि इसमें सिर्फ खाने पीने की चीजें ही नहीं है। बल्कि जैसे सूद या ब्याज की व्यवस्था है, जिसको शरीयत ने हराम करार दिया है। मुर्दा जानवर का गोश्त , शराब आदि को हराम करार दिया है। बहुत सारे उत्पाद ऐसे आते हैं जिनमें अल्कोहल या इसी तरह की वस्तुओं का प्रयोग होता है तो वह शरीयत के हिसाब से हराम होती हैं। इसको सियासी नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ जो बात कह रहे हैं कि इसका पैसा आतंकी गतिविधियों में, लव जिहाद में या धर्मांतरण आदि में होता है तो वह इसे रोकें।

जानवर को कम तकलीफ देकर मारना है मकसद: सैयद काजमी

दीनियात विभाग के ही सैयद मोहम्मद अहमद काजमी कहते हैं कि दो तरह से किसी भी जानवर को मारा जाता है। एक झटका और दूसरा हलाल।इसका मकसद है कि जानवर को मारा जाए लेकिन कम तकलीफ देकर, इसमें एक खास रग को काटा जाता है जिससे तकलीफ कम हो। यह प्रकृति एक व्यवस्था के तहत चल रही है।

उन्होंने बताया कि कई जगह पर जला कर या कुल्हाड़ी से मारा जाता है लेकिन हलाल की जो प्रक्रिया है वह मजहब के तहत है। यह इंसानियत के लिए बेहतर है। एक दूसरे पर निर्भर हैं। इंसान जानवर खाता है, जानवर दूसरे जानवर खाता है। दूसरा जानवर घास खाता है। अब यह साबित हो गया है कि जान सब में होती है। इसके अलावा सिर्फ मुस्लिम ही जानवर नहीं काटते। अन्य मजहब में भी बलि दी जाती है और जानवर काटे जाते हैं। बस इस्लाम में हमें एक तरीका बताया है कि जानवर को कम नुकसान और तड़पाकर काटा जाए। उसके अवशेष को सही तरीके से निष्पादित किया जाए।

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