पश्चिम बंगाल से एक बेहद चिंताजनक रिपोर्ट सामने आई है। एक हालिया सर्वे में खुलासा हुआ है कि राज्य में हर दिन औसतन 25 से ज्यादा लोग डूबने से अपनी जान गंवा रहे हैं — और दुखद बात ये है कि इनमें से आधे से ज्यादा मासूम बच्चे होते हैं।
यह सर्वे चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट (CINI) और द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ ने मिलकर किया है, जिसे कोलकाता में ‘वर्ल्ड ड्राउनिंग प्रिवेंशन डे’ पर जारी किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल पश्चिम बंगाल में करीब 9000 लोग डूबने से मरते हैं, जिनमें सबसे अधिक संख्या 1 से 9 साल के बच्चों की है। इन बच्चों की मृत्यु दर 121 प्रति लाख है — जो दुनियाभर में सबसे ज्यादा बताई जा रही है।
“कई मौतें तो दर्ज भी नहीं होती”
CINI के संस्थापक सचिव डॉ. समीर चौधरी का कहना है, “असल संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि डूबने से होने वाली कई मौतें तो कहीं दर्ज ही नहीं होतीं।” उन्होंने बताया कि हर साल दुनियाभर में डूबने से लगभग 3 लाख लोगों की मौत होती है, जिनमें से 18% अकेले भारत में होती हैं — और उनमें भी 17% मौतें पश्चिम बंगाल से हैं।
“सीपीआर न मिलने से जान नहीं बच पाती”
CINI की सीईओ इंद्राणी भट्टाचार्य ने बताया कि 1 से 4 साल की उम्र के बच्चे अक्सर घर के पास मौजूद छोटे तालाबों या पानी के गड्ढों में गिरकर डूब जाते हैं, जब उनकी मां घर के कामों में व्यस्त होती हैं। वहीं, 4 से 10 साल के बच्चे खेलते-खेलते या नहाते वक्त डूब जाते हैं। अक्सर समय पर CPR न मिलने की वजह से उनकी जान नहीं बच पाती।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि ज्यादातर हादसे दोपहर 12 से 2 बजे के बीच होते हैं, जब माता-पिता मजदूरी या खेतों में काम करने गए होते हैं। इंद्राणी ने यह भी कहा, “अक्सर ऐसे हादसों के बाद मां को दोषी ठहराया जाता है, जो कि बिल्कुल गलत है।”
डूबने से रोकथाम के लिए उठाए जा रहे कदम
CINI की ओर से जानकारी दी गई कि हादसों से बचाव के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। अब तक 101 तालाबों के आसपास सुरक्षा के लिए बाड़ लगाने की शुरुआत की जा चुकी है, जिसमें स्थानीय पंचायतों की मदद ली जा रही है।
इसके अलावा सुंदरबन इलाके में ‘कवच केंद्र’ स्थापित किए गए हैं, जहां दोपहर के समय बच्चों की देखभाल की जाती है ताकि माता-पिता काम पर बेफिक्र जा सकें। पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग (WBCPCR) की अध्यक्ष तूलिका दास ने कहा, “यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं। हमें तुरंत कदम उठाने होंगे ताकि इन मासूम जिंदगियों को बचाया जा सके। तालाबों के आसपास सुरक्षा और CPR का प्रशिक्षण बेहद जरूरी है।”
93% बच्चों के डूबने के वक्त कोई बड़ा मौजूद नहीं था
सर्वे में यह भी पाया गया कि 93% मामलों में जब बच्चे डूबे, तब वे अकेले थे। और 90% से अधिक मामलों में उन्हें बचाने की कोशिश पड़ोसियों या परिवार वालों ने की, जो CPR जैसी जीवनरक्षक प्रक्रिया से अनजान थे। सिर्फ 10% पीड़ितों को समय पर CPR मिला और महज 12% को पानी से निकालने के बाद अस्पताल ले जाया गया।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2024 में ‘नेशनल स्ट्रैटेजी फॉर प्रिवेंशन ऑफ अनइंटेंशनल इंजरी’ की शुरुआत की है, जिसमें डूबने को चार प्रमुख खतरों में शामिल किया गया है। सर्वे की रिपोर्ट सरकार और सामाजिक संगठनों से अपील करती है कि वे बच्चों को ऐसे हादसों से बचाने के लिए ठोस रणनीति बनाएं और ज़मीनी स्तर पर काम करें।
नतीजा साफ है — जागरूकता, निगरानी और त्वरित बचाव ही इन मासूम जानों को डूबने से रोक सकता है।