बिहार SIR यानी विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्य मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील निजाम पाशा ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि फॉर्म जमा करने के बावजूद लोगों को इस लिस्ट में शामिल नहीं किया जा रहा है। सिर्फ एक बूथ से ही 231 लोगों के नाम हटाए गए हैं जो 2003 की मतदाता सूची में थे। इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बागची ने कहा कि हम याचिकाकर्ताओं का स्वागत करते हैं वे सूची दें, ताकि चीजें सुधारी जा सकें। बिहार को इस तरह पेश किया गया मानो यह गरीब राज्य है और यहां कुछ डिजिटल नहीं है। हर जगह बाढ़ है, कोई सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं। ऐसा दिखाया गया जैसे यह अंधकार युग में जी रहा है। पहले राष्ट्रपति बिहार से थे, यह ज्ञान की भूमि है।
चुनाव आयोग जारी करेगा डेटा जस्टिस सूर्यकांत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बिहार और अन्य राज्यों में गरीब आबादी है। यह एक वास्तविकता है। ग्रामीण इलाकों को अभी समय लगेगा। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 65 लाख जिन वोटरों के नाम हटाए गए हैं, उनके नामों को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस डेटा को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। जिसके जवाब में चुनाव आयोग ने कहा कि ठीक है, अगर कोर्ट का यह आदेश है तो वह इस डेटा को सार्वजनिक कर देंगे। इस दौरान जस्टिस कांत ने कहा कि अघर 22 लाख लोग मृत पाए गए हैं तो उनके नाम क्यों नहीं बताए जा रहे हैं।
22 अगस्त को होगी अगली सुनवाई इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार SIR मामले पर चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वे मंगलवार तक 65 लाख लोगों के डेटा को जिला स्तर की वेबसाइट पर सार्वजनिक करें। साथ ही उनके हटाए जाने का कारण भी बताने को कोर्ट ने कहा है। कोर्ट ने कहा कि बूथ स्तर के अधिकारी भी हटाए गए मतदाताओं की सूची प्रदर्शित करेंगे। बता दें कि इस मामले में अगली सुनवाई अब 22 अगस्त को की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा कि चुनाव आयोग मृत, स्थानांतरित या अन्य कारणों से हटाए गए मतदाताओं के नाम स्पष्ट रूप से सूची में दिखाएं और जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में डालें।