अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पहुंचे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अपना खास मिशन शुरू किया है जो बायोमेडिकल मिशन है। वे पहले अंतरिक्ष यात्री हैं, जिन्होंने इन-ऑर्बिट प्रयोग कर रहे हैं। ‘Shux’ नाम से अंतरिक्ष में मशहूर हुए शुभांशु शुक्ला ने मिशन की शुरुआत माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों की परेशानियों के एक महत्वपूर्ण अध्ययन पर काम शुरू किया है, ये एक ऐसा ऐसा मुद्दा है, जिसने अंतरिक्ष चिकित्सा को लंबे समय से चुनौती दी है। शुक्ला के मिशन का मुख्य विषय मायोजेनेसिस प्रयोग है, जिसे ISS के लाइफ साइंसेज ग्लोवबॉक्स (LSG) के अंदर आयोजित किया गया है।
‘Shux’ का मिशन कैसे होगा फायदेमंद
इस शोध का उद्देश्य यह पता लगाना है कि अंतरिक्ष में रहने के दौरान की परिस्थितियां इंसान के मांसपेशियों के विकास और कार्य को कैसे बाधित करती हैं। 3D कंकाल मांसपेशी ऊतक चिप्स का उपयोग करते हुए, इसका अध्ययन मांसपेशी कोशिकाओं पर सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को दिखाता है, जिससे कई तरह के परिवर्तन सामने आते हैं। बता दें कि अंतरिक्ष में रहते हुए एक इंसान की मांसपेशी फाइबर 25.8 प्रतिशत पतले और 23.7 प्रतिशत छोटे हो जाते हैं, साथ ही उसकी शक्ति में भी 66.3 प्रतिशत की गिरावट आती है। इसरो के अधिकारियों ने पहले कहा था, “इस शोध से कई तरह की चिकित्सीय परिणामों का पता चल सकता है।”
कैसे की जाएगी स्टडी
इस शोध के लिए MyoD1 और MyoG का प्रयोग किया गया है, जो मांसपेशी कोशिका वृद्धि और इसकी मरम्मत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस शोध से मिली जानकारी अंतरिक्ष यात्रियों को लंबी अवधि के मिशन के दौरान मांसपेशियों की ताकत बनाए रखने में मदद कर सकती है और पृथ्वी पर लौटने के बाद उनकी मांसपेशियों को पहुंचे नुकसान और उसके मूवमेंट में आई कमी के उपचार की जानकारी दे सकती है।
इसके अलावा, एक और बेहतरीन परियोजना है फोटोनग्रैव, जो मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफ़ेस हेडसेट का उपयोग करके मस्तिष्क रक्त प्रवाह के माध्यम से तंत्रिका गतिविधि को ट्रैक करती है। यह शोध विचार-नियंत्रित अंतरिक्ष यान प्रणालियों की संभावना का पता लगाता है और स्ट्रोक से बचने के लिए अंतरिक्ष से आए लोगों को जिनका घूमना फिरना कम होता है उनके लिए न्यूरोरिहैबिलिटेशन थेरेपी में सहायता कर सकता है।
भारत के लिए क्यों खास है ये मिशन
अंतरिक्ष मिशन एक्स-4 में भारत की भागीदारी एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा है, जिसमें 31 देशों के 60 से अधिक प्रयोग किए जाने हैं। इसरो के माध्यम से भारत ने मिशन में सात तरह के शोध करने की बात कही है। इन अध्ययनों में भारत की तरफ से शुभांशु शुक्ला की भूमिका मानव अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की महत्वपूर्ण भागीदारी निभाने वाला है, जो अंतरिक्ष में रहने के बाद स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के लिए बेहद जरूरी है। शुभांशु शुक्ला का आईएसएस पर काम न केवल अंतरिक्ष यात्रियों के अंतरिक्ष में जीवित रहने के तरीके को बेहतर आयाम दे सकता है, बल्कि उनके पृथ्वी पर लौटने के बाद की स्वास्थ्य परिस्थितियों के लिए भी अहम साबित हो सकता है।
शुक्ला का मिशन, निजी तौर पर संचालित एक्सिओम-4 (एक्स-4) अंतरिक्ष उड़ान का हिस्सा है, जिसमें कई तरह के प्रयोग शामिल हैं, जिसमें टेलीमेट्रिक हेल्थ एआई पर आधारित अल्ट्रासाउंड स्कैन को बायोमेट्रिक डेटा के साथ जोड़ना, ताकि वास्तविक समय में हृदय और संतुलन प्रणालियों की निगरानी की जा सके। ऐसी प्रणालियां पृथ्वी पर कम सेवा वाले स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांति ला सकती हैं।