लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 साल पुरानी एक याचिका को खारिज करते हुए किरायेदार पर 15 लाख रुपये हर्जाना लगाया है। न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि किरायेदार ने 1979 से किराया नहीं दिया।
1981 में जब संपत्ति की स्वामिनी ने अपने बेटे के लिए व्यवसाय शुरू करने के उद्देश्य से संपत्ति को खाली करने को कहा तो संपत्ति को मुकदमों में उलझा दिया। न्यायालय ने कहा कि इस तरह से लगभग 40 सालों तक एक पूरी पीढ़ी को अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
कोर्ट ने की ये टिप्पणी
यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने किरायेदार वोहरा ब्रदर्स की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। न्यायालय ने जिलाधिकारी, लखनऊ को भी आदेश दिया है कि यदि हर्जाने की उक्त रकम दो माह में नहीं जमा की जाती है तो वह वसूली करवाएं।
प्रतिवादी के अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा की दलील थी कि विवाद की शुरुआत वर्ष 1982 में हुई, जब संपत्ति की स्वामिनी कस्तूरी देवी ने फैजाबाद रोड पर स्थित उक्त संपत्ति को खाली करने के लिए याची से कहा, ताकि वह अपने बेटे को उसमें व्यवसाय शुरू करा सकें।
1992 में मकान मालिक के पक्ष में आया था फैसला
याची द्वारा संपत्ति को खाली करने से इनकार करने पर उन्होंने संबंधित प्राधिकारी के समक्ष रिलीज प्रार्थना पत्र दाखिल किया, जो 1992 में खारिज हो गया। उस समय वोहरा ब्रदर्स द्वारा उक्त संपत्ति का 187.50 रुपये किराया दिया जा रहा था।
प्राधिकारी के आदेश के विरुद्ध संपत्ति स्वामिनी ने अपील दाखिल की, जिसका फैसला 1995 में स्वामिनी के पक्ष में आया। इस पर किराएदार द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई, जो तब से विचाराधीन रही। प्रतिवादी के अधिवक्ता की यह भी दलील थी कि याची ने उक्त संपत्ति में शिकमी किरायेदार भी रख लिए हैं।