पालतू पशु एवं वन्यजीव दोनों ही क्षय रोग के प्रमुख कारक हैं। इनकी वजह से मनुष्यों में इस रोग का पूरी तरह नियंत्रण कठिन है। क्षय रोग नियंत्रण के लिए वन हेल्थ पद्धति कारगर हो सकती है। इससे मनुष्य, पशु, पर्यावरण तीनों के संयुक्त दृष्टिकोण से रोग पर प्रभावी नियंत्रण हो सकेगा। ये बातें एम्स भोपाल के पूर्व निदेशक डॉ. सरमन सिंह ने कहीं।
वह सोमवार को बरेली में भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. चिंतामणि सिंह की 103वीं जयंती पर संस्थान में आयोजित कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एम करिकलन ने कहा कि बंदरों, हिरणों, हाथी समेत अन्य वन्यजीवों में क्षय रोग की पुष्टि हुई है। माइकोबैक्टीरियम की नई प्रजाति मिलने से जाहिर है कि वन्यजीवों में टीबी तेजी से फैल रहा है।
डॉ. एसके अग्रवाल ने आधुनिक तकनीक और स्वस्थ पशु उच्च उत्पादन की जरूरत पर जोर दिया। कहा कि पशु स्वास्थ्य को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मजबूती बनाने के लिए शोध में नवाचार जरूरी है। डॉ. एमएल मेहरोत्रा ने डॉ. चिंतामणि सिंह के जीवन, व्यक्तित्व, योगदान की जानकारी दी।
वैज्ञानिकों को किया गया सम्मानित
कार्यक्रम में डॉ. रमेश सोमवंशी ने ट्रस्ट के उद्देश्यों, गतिविधि, उपलब्धियों की प्रस्तुति दी। डॉ. सरमन सिंह को डॉ. सीएम सिंह मेमोरियल लेक्चर अवॉर्ड, आईवीआरआई के वन्यजीव केंद्र प्रभारी डॉ. अभिजीत पावड़े को डॉ. सीएम सिंह शालिहोत्र सम्मान, एनएलवीएल प्रभारी डॉ. केएन कांडपाल को डॉ. सीएम सिंह.आरडी शर्मा पुरस्कार से नवाजा गया। संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों के प्राध्यापक, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, पशु चिकित्सा के छात्र मौजूद रहे।

