उत्तर प्रदेश में उद्योगों, स्थानीय निकायों और आवासीय परियोजनाओं के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एनओसी लेने के लिए पहले के मुकाबले 2 से 2.6 गुना तक शुल्क देना होगा। इसके लिए कैबिनेट ने उप्र जल (मल और व्यावसायिक बहिस्राव निस्तारण के लिए सहमति) (तृतीय संशोधन) नियमावली-2025 और उप्र वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) (चतुर्थ संशोधन) नियमावली-2025 को जारी करने प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। इसके तहत प्रत्येक दो वर्ष में शुल्क में 10 प्रतिशत तक की वृद्धि की जा सकती है।
राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि औद्योगिक इकाइयों और स्थानीय नगर निकायों में शुद्धीकरण संयंत्रों (एसटीपी आदि) की स्थापना और संचालन के लिए सहमति शुल्क में संशोधन के लिए ये नियमावलियां लाई गई हैं। वर्तमान में उद्योगों से प्राप्त होने वाली सहमति जल एवं वायु शुल्क ही उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के राजस्व का प्रमुख स्रोत है। यूपीपीसीबी में उद्योगों से प्राप्त होने वाली सहमति जल एवं वायु शुल्क में वर्ष 2008 के बाद कोई वृद्धि नहीं की गई थी। मूल्य सूचकांक में तब से 2.65 गुना की वृद्धि हो चुकी है। बोर्ड का तर्क था कि कामों में वृद्धि, अदालतों के आदेश के पालन और बढ़ते इंफ्रास्ट्रक्चर को ध्यान में रखते हुए आय में वृद्धि किया जाना जरूरी है।
शुल्क निर्धारण के लिए 7 श्रेणियां
शुल्क की दरों में यह परिवर्तन केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिर्वतन मंत्रालय के शुल्क पुनर्निधारण के निर्देशों के तहत किया गया है। इसमें शुल्क की कुल 7 श्रेणियां तय की गई हैं। शुल्क निर्धारण प्रदूषण स्तर की तीन श्रेणी के हरी, नारंगी व लाल के तहत करने के निर्देश दिए गए। वायु अधिनियम और जल अधिनियम के अनुसार अलग-अलग शुल्क निर्धारित किया गया है। केंद्र की इस अधिसूचना में राज्य सरकार को शुल्क निर्धारण का अधिकार दिया गया है।
250 केवीए के डीजल सेट पर कोई शुल्क नहीं
ऐसे औद्योगिक संयंत्र जिनमें डीजल जनरेटर वायु प्रदूषण का एकमात्र स्रोत है, उन्हें डीजल जेनरेटर की क्षमता के आधार पर 1 हजार रुपये से लेकर 5 हजार रुपये तक का वार्षिक शुल्क देना होगा। 250 केवीए या इससे कम का जेनरेटर होने पर कोई शुल्क नहीं देना होगा।

