मथुरा में 1978 में आई बाढ़ से हालात बहुत विकराल हुए थे। दो सौ गांव बाढ़ की चपेट में आ गए थे और करीब दो लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। साथ ही हजारों एकड़ फसलें भी जलमग्न हो गई थीं। यहां तक कि द्वारिकाधीश मंदिर की सीढि़यां तक डूब गईं थीं। हालात इतने विकराल थे कि घाटों, मंदिरों और तटवर्ती बस्तियों ने बाढ़ त्रासदी की गहरी छाप छोड़ी थी। बाढ़ के जख्म ऐसे थे कि वर्तमान स्थिति को देखकर लोगों की यादें फिर से ताजा हो गई हैं।
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के आंकड़ों के अनुसार, 8 सितंबर 1978 को यमुना का जलस्तर 169.73 मीटर दर्ज किया गया था, जो अब तक का सर्वाधिक जलस्तर माना जाता है। पानी का बहाव इतना था कि घाटों से लेकर शहर के प्रमुख बाजारों तक तीन-तीन फीट पानी भर गया था। रेलवे स्टेशन पर पानी भरने से ट्रेनों का परिचालन रुक गया था। साथ ही गोकुल, वृंदावन और मथुरा के दर्जनों धार्मिक स्थल जलमग्न हो गए थे।