खूबसूरत-युवा दिखाना भला कौन नहीं चाहता। इंजेक्शन-सर्जरी के दुष्प्रभाव से अधिकांश लोग बचते हैं। अब ग्रोथ फैक्टर कंसन्ट्रेट (जीएफसी) ट्रीटमेंट में इनकी जरूरत नहीं है। इसमें मरीज के रक्त से तैयार प्लाज्मा का इस्तेमाल किया जाता हैं। इससे झुर्रियां, झाइयां खत्म होने के साथ बाल टूटना कम होने के साथ नए उगाने में भी सहायक हैं। फतेहाबाद रोड स्थित होटल में इंडियन डेंटल एसोसिएशन की एडाकॉन-2025 में इस पर व्याख्यान हुए।
मथुरा के डॉ. आशीष सिंह ने कहा फेशियल एस्थेटिक्स में जीएफसी बेहद उन्नत और कारगर ट्रीटमेंट है। मरीज का 10-20 एमएल रक्त लेकर मशीन के माध्यम से प्लाज्मा निकालते हैं। मरीज के संबंधित स्थान पर जैल के बाद इस प्लाज्मा को लगाते हैं। सामान्य तौर पर मरीज को 20 से 30 दिन के अंतराल में 4-6 सिटिंग दी जाती हैं। इससे शरीर के अंदर सेल मजबूत होने के साथ हार्मोंस भी सक्रिय होते हैं। चेहरे की झुर्रियां, झाइयां, मुहांसों और चोट के निशान भी कम होने लगते हैं। त्वचा में खिंचाव आने से प्राकृतिक रूप से चमक बढ़ती है।
सचिव डॉ. एनएस लोधी ने बताया कि जीएफसी के लिए शादी के योग्य युवक-युवती और उच्च परिवारों की महिला-पुरुष अधिक करा रहे हैं। एलर्जी समेत अन्य साइड इफेक्ट नहीं होते हैं। इसका प्रति सिटिंग का खर्च 5 से 10 रुपये आता है। आइडीए के अध्यक्ष डॉ. युनुस खान ने बताया कि दो दिवसीय कार्यशाला में दांतों की बीमारी से बचाव, सर्जरी और कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट पर विशेषज्ञों ने व्याख्यान दिए हैं। कार्यशाला में निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. योगेश शर्मा, डॉ. विवेक शाह, डॉ. कुशल सिंह, डॉ. मोहित गुप्ता, डॉ. गुलशन सिंह, डॉ. शिखा शाह, डॉ. मीरा तोमर, डॉ. खुशहाल सिंह यादव, डॉ. सुनील बघेल, डॉ. मेघा यादव, डॉ. मोनिका अरोड़ा, डॉ. सौरभ सिंह पुंडीर आदि मौजूद रहे।
एआई की मदद से महीने भर में हो जाएगा इम्प्लांट
दिल्ली के डॉ. आदित्य चौधरी ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) की मदद से दांतों का इम्प्लांट आसान हो गया है। इसकी सहातया से मुंह व मसूड़े-दांत के आकार का माप सटीक हो रहा है। पहले की विधि में तीन महीने का समय लगता था, अब एआई से एक महीने में ही प्रक्रिया पूरी हो रही है। दिल्ली के डॉ. निखिल बहुगुणा ने संक्रमण से नस खराब होने पर दांतों का बचाव के लिए उपयोग होने वाली नई विधि का प्रशिक्षण दिया।