अमेरिकी सांसदों और सामुदायिक नेताओं ने H-1B वीजा आवेदनों पर 1,00,000 डॉलर की फीस लगाने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले को “विवेकहीन” और “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया है। इसके साथ ही, उन्होंने ट्रंप के इस कदम का आईटी इंडस्ट्री“बेहद नकारात्मक” प्रभाव पड़ने की भी आशंका जताई है। सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने कहा कि H-1B वीजा पर 1,00,000 डॉलर की फीस लगाने का ट्रंप का फैसला “बेहद कुशल कामगारों को अमेरिका से दूर करने का एक भयावह प्रयास है, जिन्होंने लंबे समय से हमारे कार्यबल को मजबूत किया है, इनोवेशन को बढ़ावा दिया है और लाखों अमेरिकियों को रोजगार देने वाली इंडस्ट्री की स्थापना में मदद की है।”
अमेरिका को इमिग्रेशन सिस्टम अपग्रेड करने की सलाह
कृष्णमूर्ति ने कहा कि कई H-1B वीजा होल्डर अंततः अमेरिका के नागरिक बन जाते हैं और ऐसे बिजनेस शुरू करते हैं जिनसे अमेरिका में अच्छी सैलरी वाली नौकरियां पैदा होती हैं। उन्होंने कहा, “ जब दूसरे देश ग्लोबल टैलेंट को आकर्षित करने की होड़ में लगे हैं तो अमेरिका को भी अपने कार्यबल को मजबूत बनाने के साथ-साथ इमिग्रेशन सिस्टम को अपग्रेड करना चाहिए। अमेरिका को ऐसी बाधाएं खड़ी नहीं करनी चाहिए जो हमारी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को कमजोर करें।”
अमेरिकी आईटी सेक्टर पर संकट मंडराने की चेतावनी
पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल के दौरान उनके सलाहकार रहे और इमिग्रेशन पॉलिसी पर एशियाई-अमेरिकी समुदाय के नेता अजय भुटोरिया ने H-1B वीजा फीस बढ़ाने संबंधी ट्रंप की नई योजना से अमेरिकी आईटी सेक्टर की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त पर संकट मंडराने की चेतावनी दी। भूटोरिया ने कहा, ” दुनिया भर से शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने वाले H-1B प्रोग्राम के तहत फिलहाल 2000 से 5000 अमेरिकी डॉलर की फीस ली जा रही थी। ऐसे में कुल फीस में भारी बढ़ोतरी होने से इसपर अभूतपूर्व संकट मंडरा रहा है, जो प्रतिभाशाली कामगारों पर निर्भर छोटे बिजनेस और स्टार्टअप्स को कुचल देगा।”
ट्रंप के फैसले से अमेरिका से दूरी बना लेंगे स्किल्ड प्रोफेशनल्स
भूटोरिया ने कहा कि इस कदम से वे स्किल्ड प्रोफेशनल्स दूर हो जाएंगे जो सिलिकॉन वैली को शक्ति प्रदान करते हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर का योगदान देते हैं। उन्होंने कहा कि ये कदम उल्टा पड़ सकता है क्योंकि इससे प्रतिभाशाली कामगारों को कनाडा या यूरोप जैसे प्रतिस्पर्धियों के पास जाना पड़ सकता है। ‘फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज’ के खंडेराव कांद ने कहा कि H-1B वीजा पर 100,000 अमेरिकी डॉलर की फीस लगाया जाना एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है, जिसका व्यवसायों विशेष रूप से सॉफ्टवेयर और आईटी सेक्टर पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

