कछुओं की संकटग्रस्त प्रजातियों एवं उनके प्राकृतिक ठिकाने को संरक्षित करने के लिए लोगों को जागरूक बनाने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 23 मई को विश्व कछुआ दिवस मनाया जाता है। अच्छी खबर ये है कि दुनिया में दुर्लभ बटागुर कछुओं के लिए चंबल नदी नया ठिकाना बनकर उभरी है। बटागुर कछुए की दो प्रजाति साल और ढोर यहां हैं।
सात साल से कछुओं के संरक्षण पर काम कर रहे टीएसए (टर्टल सर्वाइवल एलायंस ) के प्रोजेक्ट ऑफिसर पवन पारीक ने बताया कि कछुओं की साल प्रजाति सिर्फ चंबल नदी में बची है। इनका वैज्ञानिक नाम बटागुर कचुगा है। जबकि कछुओं की ढोर प्रजाति 98 फीसदी चंबल नदी में है। दो फीसदी आबादी गंगा और यमुना में है। इनका वैज्ञानिक नाम बटागुर ढोंगोका है।
बटागुर कछुओं की मार्च के आखिर में नेस्टिंग हुई थी। गढ़ायता में बनाई हैचरी में 227 नेस्ट हैं। जिनमें करीब 4500 अंडे हैं। अब तक 1800 अंडों से बच्चे बाहर आ चुके हैं। उन्होंने बताया कि बाह और इटावा रेंज से जहां से अंडों को हैचरी में लाया गया था, उन्हीं स्थानों पर बच्चों को छोड़ा जा रहा है। बाह के रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि बाह रेंज में 130 नेस्ट हैं। जिनमें 3250 अंडे हैं। अब तक 2600 बच्चों का जन्म हुआ है। जिनको नदी तक वन विभाग की टीम ने पहुंचाया है।
कछुए भी बदलते हैं रंग
गिरगिट ही नहीं, कछुए भी रंग बदलते हैं। पवन पारीक ने बताया कि प्रजनन सीजन (मार्च-मई) में साल प्रजाति के नर कछुए रंग बदलते हैं। नर कछुए का सिर का रंग लाल, नीला, पीला, सफेद हो जाता है।
चंबल में पल रहीं संकटग्रस्त प्रजातियां
चंबल नदी में कछुओं की आठ संकटग्रस्त प्रजातियां पल रही हैं। इनकी संख्या एक लाख से ज्यादा है। जिनमें कठोर कवच वाली ढोर, साल, पचेड़ा, काली ढोर, नरम कवच वाली स्योत्तर, कटहवा, सुंदरी, मोरपंखी प्रजातियां शामिल हैं।
गंगा को साफ करेंगे स्योत्तर कछुए
नमामि गंगे अभियान के तहत चंबल के स्योत्तर प्रजाति के कछुओं को गंगा की सफाई के लिए चुना गया था। 4 साल पहले कुकरैल प्रजनन केंद्र लखनऊ की टीम चंबल से स्योत्तर कछुओं के अंडे ले गई थी। टर्टल सर्वाइवल एलायंस की टीम की देखरेख में इनकी हैचिंग हुई और वयस्क होने पर गंगा नदी में छोड़े गए। टीएसए के पवन पारीक ने बताया कि कछुओं की यह प्रजाति सड़े-गले मांस को भोजन के रूप में इस्तेमाल कर नदी की सफाई में अहम भूमिका निभाती है।
बिहार, बंगाल तक होती तस्करी
मांस और शक्तिवर्धक दवाओं के लिए बिहार, बंगाल के रास्ते विदेशों तक तस्करी कर कछुओं को खपाया जाता है। चंबल से वाया कानपुर होने वाली तस्करी को इटावा में पिछले 5 सालों में लगातार पकड़े जाने से कुछ हद तक अंकुश लगा है। वन विभाग की पहरेदारी भी रंग ला रही है।
कैल्शियम चक्र में योगदान
कछुए का मानव समाज के लिए सांस्कृतिक, पारिस्थितिक, वैज्ञानिक और आर्थिक दृष्टिकोण से गहरा महत्व है। पारिस्थितिक दृष्टिकोण से, कछुए कैल्शियम चक्र में योगदान करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, कछुए का अध्ययन विकास और संरक्षण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। आर्थिक दृष्टिकोण से, कछुए इकोटूरिज्म का स्रोत हैं और संरक्षण प्रयासों से दीर्घकालिक लाभ मिलता है।