आपातकाल के जख्म: पुलिस ने पैर के नाखून उखाड़े, डंडों से पीटा…लोकतंत्र सेनानियों ने बयां किया दर्द

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आपातकाल के जख्म: पुलिस ने पैर के नाखून उखाड़े, डंडों से पीटा…लोकतंत्र सेनानियों ने बयां किया दर्द

25 जून 1975 को जब देश में आपातकाल लगाया गया था, तब से 50 साल बीत चुके हैं। इन पांच दशकों में कई सरकारें बदलीं, नेतृत्व बदला और सत्ता के चेहरे भी बदल गए। उस समय के संघर्ष में शामिल कई प्रमुख लोग अब हमारे बीच नहीं हैं, वहीं जो उस समय किशोरावस्था में थे, वे अब प्रौढ़ हो चुके हैं। इनमें कई ऐसे चेहरे भी शामिल हैं, जिन्हें आपातकाल के दौरान न केवल उत्पीड़न और अत्याचार झेलने पड़े, बल्कि कारागार की कठोर यातनाएं भी सहनी पड़ीं। कांच नगरी फिरोजाबाद में मौजूदा समय में 52 लोकतंत्र सेनानी हैं। इनमें से कुछ लोकतंत्र सेनानियों से आपातकाल के दिनों पर बात की।

यातनाएं सहकर भी नहीं डिगे
फिरोजाबाद के तिलक नगर निवासी रवींद्र शर्मा ढपली आपातकाल की बात करने पर आज भी सिहर उठते हैं। उन्होंने बताया कि उस समय वह 19 साल के थे और एसआरके कॉलेज में बीए के छात्र थे। आपातकाल लागू होने के ठीक एक महीने बाद वह बोहरान गली से आंदोलन करते हुए गिरफ्तार हुए थे। जब वह बोहरान गली में नारे लगाकर सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, तब इंदिरा गांधी सरकार के प्रति उनकी आंखों में खून उतर रहा था। जैसे ही वह घंटाघर चौराहे पर नारे लगाते पहुंचे, पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। तत्कालीन सीओ एलएन श्रीवास्तव ने उन्हें जमकर पीटा और पैर के नाखून तक उखाड़ लिए। अगले दिन उन्हें जेल भेज दिया गया, जहां वह तीन महीने 16 दिन तक रहे। जेल में भी सरकार के प्रति उनका गुस्सा बरकरार रहा और उन्होंने वहां भी आंदोलन किया।

तत्कालीन सीओ सरकार का एजेंट बनकर कर रहे थे काम
मूल रूप से तिलक नगर निवासी और वर्तमान में आगरा में रह रहे सुशील मिश्रा ने बताया कि आपातकाल के दौर में कांच नगरी के लोगों ने भी खूब आंदोलन किया था। उस दौर को याद करते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र प्रेमियों के लिए 25 जून स्वतंत्र भारत के सबसे काले दिनों में से एक है। उन्होंने कहा, उस दौरान हमने बहुत यातनाएं झेलीं, लेकिन समझौते के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। तत्कालीन सीओ एलएन श्रीवास्तव सरकार का एजेंट बनकर काम कर रहे थे। मेरे बाल बड़े थे, सीओ ने मेरे बालों को ही पूरा उखाड़ लिया। इसके बाद डंडों से पीटा। रात भर दक्षिण थाने में रखा। जेल में गुड़-चना खाकर रात गुजारी। खाना सही से न मिलने के कारण भूख हड़ताल कर दी, तब जाकर जेल में दो दिन बाद से खाना बेहतर दिया गया।

आगरा जेल में किया आंदोलन तो एटा में किए गए शिफ्ट
रसूलपुर निवासी दिनेश भारद्वाज की उम्र आज 67 पार हो गई है, लेकिन युवावस्था में महज 17 साल की उम्र में वह आपातकाल में जेल गए। उन्होंने बताया कि वह उस दिन को कभी नहीं भूल सकते। आपातकाल के दौरान वह 25 नवंबर 1975 को जेल गए। उन्होंने बताया कि सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के जुर्म में सरकार ने उन्हें सलाखों के पीछे भेज दिया। एफआईआर में यह लिखा था कि वह गीत गाकर लोगों को भड़का रहे थे। उन्हें आगरा जेल भेजा गया। वहां पर भी उन्होंने इस बात का सत्याग्रह किया कि जिस तरह राजनीतिक व्यक्ति को जेल में सुविधाएं मिलती हैं, उस तरह की सुविधाएं दी जाएं। इस पर उन्होंने आमरण अनशन किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि जेल प्रशासन ने उन लोगों को एटा जेल शिफ्ट कर दिया।

तिलक लगाकर आंदोलन के लिए निकले थे
पेमेश्वर गेट निवासी दिनकर प्रकाश गुप्ता ने बताया कि वह उस समय 14 साल के थे, जब इमरजेंसी लगी थी। उस समय फिरोजाबाद में ही संघ का शिविर पीडी जैन इंटर कॉलेज में लगा था। वह संघ के स्वयंसेवक थे। यहां पर संघ के सरसंघचालक बाला साहेब देवरस जिले में ही थे। उनको गिरफ्तार करने के लिए पुलिस आ गई थी, लेकिन हम लोग अड़ गए और उन्हें तत्काल शिकोहाबाद से ट्रेन में नागपुर के लिए बैठाया। उस दौरान आश्चर्य लाल नरुला और उनकी पत्नी ने उन्हें तिलक लगाकर जेल जाने के लिए रवाना किया। वह नारे लगाते हुए इमामबाड़ा चौराहे से निकले, पुलिस ने पकड़ा और जमकर लाठियां बरसाईं। इसके बाद पहले उत्तर फिर दक्षिण थाने भेज दिया गया। अगले दिन चालान काटकर जेल भेज दिया गया। वह करीब 70 दिन जेल में रहे। जेल में भी उन लोगों ने जनजागृति की और जेल से आने के बाद भूमिगत होकर काम किया।

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