पटना। सेवानिवृत्त IAS अधिकारी अशोक कुमार चौधरी की अध्यक्षता में बिहार की नितीश सरकार ने सातवें राज्य वित्त आयोग का गठन कर दिया है। आयोग पंचायतों (जिला परिषद, पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों) और नगरपालिकाओं (नगर निगम, नगर परिषद एवं नगर पंचायतों) की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करेगा और सरकार को अपनी अनुशंसा देगा।
अगले साल 31 मार्च तक देनी होगी रिपोर्ट
वित्त विभाग ने इससे संबंधित अधिसूचना जारी कर दी है। अगले वर्ष 31 मार्च तक आयोग को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देनी है। अध्यक्ष के साथ आयोग में दो सदस्य हैं. बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अनिल कुमार और पटना विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त अर्थशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. कुमुदनी सिन्हा।
73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के तहत हुई स्थापना
राज्य वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है। इसकी स्थापना 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के अंतर्गत हुई थी। पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए राज्य वित्त आयोग की नियुक्ति होती है। सातवें राज्य वित्त आयोग की अनुशंसाएं वित्तीय वर्ष 2026-27 से प्रभावी होंगी।
वित्त विभाग द्वारा दिया जाएगा वेतन भत्ता
इसके अध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन-भत्ता व दूसरी सुविधाओं का निर्धारण वित्त विभाग द्वारा किया जाएगा। सचिवालीय सहायता भी वित्त विभाग ही देगा। अलबत्ता कार्य-संचालन के लिए आयोग अपनी प्रक्रिया स्वयं निर्धारित करेगा।
सातवें राज्य वित्त आयोग के मुख्य कार्य
राज्य की वित्तीय स्थिति की जांच, राजस्व और व्यय का पूर्वानुमान, वित्तीय व्यवस्था में सुधार के लिए अनुशंसा, त्रि-स्तरीय पंचायती राज निकायों के संसाधनों के लिए राज्य के वित्त में सुधार, राज्य के विभाज्य पूल से पंचायतों और नगर पालिकाओं को धन वितरण की अनुशंसा करना।
पंचायतों के लिए आय के नए स्रोतों की पहचान, राज्य और पंचायती राज संस्थानों के बीच करों, शुल्कों, अर्थ-दंडों और टोल शुल्क जैसे कर-राजस्व के विभाजन को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर परामर्श देना इसके प्रमुख कार्य हैं।