मुजफ्फरपुर। जर्मनी में रहकर रिसर्च कर रहे बिहार के मुजफ्फरपुर शहर के विज्ञानी डॉ. आदित्य शेखर ने निमोनिया के इलाज के लिए एक नई दवा खोजी है। वह वहां के एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च टीम में शामिल हैं।
नई दवा स्टैफिलोकोकस आरियस नामक बैक्टीरिया से होने वाले जानलेवा फेफड़ों के निमोनिया से बचाव करेगी। इसकी जानकारी डॉ. आदित्य के पिता सदर अस्पताल के वरीय हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. ज्ञानेंदु शेखर ने दी।
बताया कि यह दवा बैक्टीरिया को नहीं मारती, बल्कि बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित एक प्रमुख हानिकारक टाक्सिन को बेअसर कर देती है। दरअसल, टॉक्सिन से ही बैक्टीरिया फेफड़े की विभिन्न कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। नई दवा से टाक्सिन बेअसर हो जाएगा। इससे बैक्टीरिया रोगजनक क्षमता खो देगा।
डॉ. शेखर की यह खोज एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल सेल प्रेस में प्रकाशित हुई है। टीम को इसका पेटेंट भी मिल चुका है। चूहों पर किए गए प्रयोगों में यह दवा प्रभावशाली साबित हुई और जानलेवा संक्रमण से उन्हें बचाया गया।
रिसर्च टीम अब क्लीनिकल ट्रायल की तैयारी में जुटी है। अगर सब कुछ सही रहा तो जल्द ही यह दवा दुनिया भर के निमोनिया मरीज़ों के लिए लाभदायक होगी।
आठ साल से कर रहे रिसर्च, मिला पेटेंट
चक्कर मैदान के पास रहने वाले डॉ. आदित्य पिछले आठ वर्षों से जर्मनी के एक सबसे बड़े इंफेक्शन रिसर्च संस्थान, हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर इंफेक्शन रिसर्च में काम कर रहे हैं। उनकी टीम को उनकी खोज के लिए पेटेंट भी प्रदान किया गया है।
डॉ. ज्ञानेन्दु ने बताया कि नई दवा बैक्टीरियल निमोनिया का इलाज अस्पतालों में एंटीबायोटिक द्वारा किया जाता है। इसके बावजूद अक्सर इलाज असफल होता है। मरीज संक्रमण के शिकार हो जाते हैं।
इस असफलता का मुख्य कारण ‘एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस’ है। जिसके तहत बैक्टीरिया खुद का स्वरूप बदल लेते हैं और एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं कर पातीं।
नई दवा बैक्टीरिया के हानिकारक प्रभावों को रोकती हैं। उनके प्रति ‘रेसिस्टेंस’ विकसित नहीं करने देतीं। नई दवा से संक्रमित चूहों को मरने से बचा लिया गया तथा उन्हें सक्रिय जीवन में वापस लौटाया गया।
यह टीम अब क्लीनिकल ट्रायल की तैयारी में लगी हुई है। डॉ. ज्ञानेन्दु ने कहा कि डॉ. आदित्य ने जिले ही नहीं बिहार की मेडिकल टीम को गौरवान्ति किया है।