प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आर्थिक लाभ के लिए एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई है और राज्य सरकार को निगरानी तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा, जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक प्राथमिकी दर्ज करने से पहले घटना व आरोप का सत्यापन किया जाए ताकि वास्तविक पीड़ित को ही सुरक्षा व मुआवजा मिल सके और झूठी शिकायत कर मुआवजा लेने वालों को धारा 182 व 214 के तहत दंडित किया जाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने बिहारी व दो अन्य की याचिकाओं पर दिया। कोर्ट ने झूठी शिकायत कर 75 हजार रुपये का मुआवजा लौटाने का आदेश देने के साथ ही दोनों पक्षों में समझौते के आधार पर अपर सत्र न्यायाधीश/विशेष अदालत में चल रही एससी-एसटी एक्ट की कार्रवाई रद कर दी।
सरकार ने दिया था 75 हजार रुपये मुआवजा
मामला थाना कैला देवी (संभल) में दर्ज था। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। सरकार ने पीड़ित को 75 हजार रुपये मुआवजा दिया। समझौता हो गया तो आपराधिक केस रद करने को याचिका दायर की गई।
कोर्ट ने शिकायतकर्ता को मुआवजा लौटाने का आदेश दिया। कहा, जिला समाज कल्याण अधिकारी के नाम ड्राफ्ट डीएम के पास जमा कर रिपोर्ट दें। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि संज्ञेय व असंज्ञेय अपराधों को समझौते से समाप्त किया जा सकता है।
पक्षकारों के बीच समझौते को कोर्ट ने सही माना और आदेश दिया कि शेष बकाया मुआवजा 25 हजार रुपये का भुगतान न किया जाए। झूठा केस दर्ज कर मुआवजा लेने वाले को दंडित करें।
झूठे केस न्याय प्रक्रिया पर संदेह पैदा कर रहे हैं। लोगों का भरोसा खत्म कर रहे हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए। कोर्ट ने आदेश की प्रति सभी जिला जजों व डीजीपी को भेजने का आदेश दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने कहा सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कानून का दुरुपयोग होने से न्याय प्रणाली पर संदेह व जनविश्वास को नुकसान पहुंचता है। इसलिए प्राथमिकी का सत्यापन जरूरी है।