नई दिल्ली। केंद्र सरकार संसद के आगामी बजट सत्र में एक नया आयकर विधेयक पेश कर सकती है, जिसका उद्देश्य मौजूदा आईटी कानून को सरल बनाना, इसे समझने योग्य बनाना और पृष्ठों की संख्या लगभग 60 प्रतिशत कम करना है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जुलाई के बजट में छह महीने के भीतर छह दशक पुराने आयकर अधिनियम, 1961 की व्यापक समीक्षा की घोषणा की थी।
एक सूत्र के अनुसार, “नया आयकर कानून संसद के बजट सत्र में पेश किया जाएगा। यह एक नया कानून होगा, न कि मौजूदा अधिनियम में संशोधन। फिलहाल, कानून के मसौदे पर विधि मंत्रालय विचार कर रहा है और बजट सत्र के दूसरे हिस्से में इसे संसद में पेश किए जाने की संभावना है।”
बजट सत्र 31 जनवरी से 4 अप्रैल तक चलेगा। पहला भाग (31 जनवरी-13 फरवरी) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लोकसभा और राज्य सभा के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करने के साथ शुरू होगा, जिसके बाद 2024-25 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा। 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। संसद 10 मार्च को पुनः आरंभ होगी और 4 अप्रैल तक चलेगी।
आयकर अधिनियम, 1961 की व्यापक समीक्षा के लिए सीतारमण द्वारा बजट घोषणा के अनुसरण में, सीबीडीटी ने समीक्षा की देखरेख करने और अधिनियम को संक्षिप्त, स्पष्ट और समझने में आसान बनाने के लिए एक आंतरिक समिति का गठन किया था, जिससे विवाद, मुकदमेबाजी कम होगी और करदाताओं को अधिक कर निश्चितता मिलेगी।
इसके अलावा, अधिनियम के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा के लिए 22 विशेष उप-समितियां स्थापित की गईं। चार श्रेणियों में जनता से सुझाव और सूचनाएं आमंत्रित की गईं हैं। ये श्रेणी हैं- भाषा का सरलीकरण, मुकदमेबाजी में कमी, अनुपालन में कमी, और अनावश्यक/अप्रचलित प्रावधान।
आयकर विभाग को अधिनियम की समीक्षा के संबंध में हितधारकों से 6,500 सुझाव प्राप्त हुए हैं। सूत्रों ने बताया कि प्रावधानों और अध्यायों को काफी हद तक कम किया जाएगा और अप्रचलित प्रावधानों को हटा दिया जाएगा।
आयकर अधिनियम, 1961, जो प्रत्यक्ष करों – व्यक्तिगत आईटी, कॉरपोरेट कर, प्रतिभूति लेनदेन कर, उपहार और संपत्ति कर के अलावा- के अधिरोपण से संबंधित है, में वर्तमान में लगभग 298 धाराएं और 23 अध्याय हैं। सूत्रों के अनुसार, “सरकार की कोशिश इन धाराओं और अध्यायों में लगभग 60 प्रतिशत की कटौती का है।”
सीतारमण ने जुलाई, 2024 के अपने बजट भाषण में कहा था कि समीक्षा का उद्देश्य अधिनियम को संक्षिप्त, सुस्पष्ट, पढ़ने और समझने में आसान बनाना है। इससे विवाद और मुकदमेबाजी कम होगी, जिससे करदाताओं को कर निश्चितता मिलेगी। इससे मुकदमेबाजी में उलझी मांग में भी कमी आएगी। उन्होंने कहा कि इसे छह महीने में पूरा करने का प्रस्ताव है।