Chardham Yatra: चारधाम यात्रा अक्षय तृतीया के दिन से शुरू हो जाएगी। अक्षय तृतीया साल 2025 में 30 अप्रैल को है। इस दिन से भक्त यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन कर पाएंगे। चारधाम की यात्रा में सबसे पहले यमुनोत्री धाम के दर्शन करने की धार्मिक मान्यता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों चारधाम यात्रा की शुरूआत यमुनोत्री से की जाती है। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही भौगोलिक कारण भी शामिल हैं। आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।
यमुनोत्री से क्यों शुरू होती है चारधाम यात्रा?
यमुनोत्री धाम माता यमुना का उद्गम स्थान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता यमुना यमराज की बहन हैं जो भय से मुक्ति प्रदान करती हैं। शास्त्रों में वर्णित एक कथा के अनुसार, एक बार यम भाईदूज के दिन अपनी बहन यमुना से मिलने गए थे। यमराज ने अपनी बहन यमुना को आशीर्वाद दिया था कि जो भी तुम्हारे जल से स्नान करेगा उसके पाप नष्ट हो जाएंगे, मृत्यु के भय से मुक्ति मिलेगी और उसे मोक्ष प्राप्त होगा। इसलिए यमुनोत्री में पाप विमोचन करने के बाद ही चारधाम की यात्रा करना शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यमुनोत्री से यात्रा शुरू करने पर चारधाम यात्रा में किसी भी प्रकार की रुकावट भक्तों को नहीं आती।
ये हैं भौगोलिक कारण
चारधाम यात्रा में चार प्रमुख तीर्थ यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हैं। यमुनोत्री चारधाम यात्रा के दौरान पश्चिम में पड़ता है इसके बाद ही अन्य धाम आती हैं। इसलिए भौगोलिक स्थिति को समझते हुए स्वाभाविक रूप से यमुनोत्री से ही यात्रा शुरू होती है।
धार्मिक कारण
धार्मिक शास्त्रों की मानें तो पश्चिम से पूर्व की ओर धार्मिक यात्रा करना शुभ होता है। पश्चिम से पूर्व की ओर दक्षिणावर्त यात्रा शुभ फलदायी मानी गयी है। इसलिए चारधाम यात्रा हमेशा यमुनोत्री से ही की जाती है। यमुनोत्री में डुबकी लगाने के बाद भक्तों को आगे बढ़ना चाहिए।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
यमुनोत्री पवित्रता के साथ ही आध्यात्मिक उन्नतिदायक नदी भी मानी गयी है। यमुनोत्री में स्नान करने से भक्तों को आत्मिक शुद्धि प्राप्त होती है। मन शांत और निश्चल होता है। यहां मन की शुद्धि पाकर भक्त आध्यात्मिक पथ पर भी अग्रसर होते हैं। इसके बाद केदारनाथ और बद्रीनाथ की ऊंची चढ़ाई भी उन्हें आसान प्रतीत होती है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।)