जम्मू। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमीन लगभग खो चुकी है। पूर्व में कांग्रेस जम्मू क्षेत्र में हमेशा अच्छी संख्या में सीटें जीतती रही और कश्मीर में हमेशा से उसका क्षेत्रीय दलों के बीच दंगल चलता रहा।
करीब दो दशकों के दौरान भाजपा की धीरे-धीरे जड़ें गहरी होने से जम्मू संभाग कांग्रेस के हाथ से फिसलता चला गया। इसी कारण लोकसभा के बाद अब विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद प्रदेश कांग्रेस में अंतर्कलह बढ़ गई है।
अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं जम्मू संभाग के नेता
जम्मू संभाग के नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो उठे हैं। अधिकांश ने नेकां से गठबंधन को प्रमुख रूप से जिम्मेदार ठहराया। इसके अलावा पार्टी नेता टिकट आवंटन, चुनाव से पहले प्रधान, तीन और कार्यवाहक प्रधानों की नियुक्ति और गंभीर होकर प्रचार न करने जैसे कई मुद्दों पर नाराज हैं।
जम्मू में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं व हारे हुए उम्मीदवारों ने आपस में बैठकर बैठक कर उक्त मुद्दों पर मंथन किया। बता दें कि कांग्रेस का नेकां से गठबंधन होने के दौरान भी कई नेताओं ने खुलकर विरोध किया था। वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा ने भी संगठनात्मक ढांचे में बदलाव के संकेत दिए हैं।
भरत सिंह सोलंकी से है नाराजगी
सूत्रों ने बताया कि इसके लिए पार्टी के जम्मू कश्मीर प्रभारी भरत सिंह सोलंकी के कामकाज के तरीके पर नाराजगी है। सोलंकी ने जम्मू संभाग को गंभीरता से नहीं लिया। उनका अधिक ध्यान कश्मीर पर ही केंद्रित रहा।
कांग्रेस ने चुनाव में जम्मू में 32 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। विजयपुर, कठुआ और उधमपुर पूर्व को छोड़कर पार्टी ने 29 उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया। जम्मू संभाग की कुल 43 सीटों में से कांग्रेस ने मात्र एक ही राजौरी वाली सीट को जीता।
21 हिंदू उम्मीदवार हार गए चुनाव
जम्मू संभाग में पार्टी के सभी 21 हिंदू समुदाय के उम्मीदवार चुनाव हार गए। साल 2014 में कांग्रेस ने सुरनकोट, रियासी, बनिहाल और इंदरवाल सीट को जीता था।
ये चारों सीटें इस बार हार गए हैं। सूत्रों के अनुसार कुछ नेता तो पार्टी की स्थिति को देख अपना सियासी भविष्य किसी अन्य दल में देखने की तैयारी कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी नहीं सीखा
पूर्व प्रभारी रजनी पाटिल के बाद नए प्रभारी भरत सिंह सोलंकी ने सिस्टम में कोई बदलाव नहीं किया। लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी कांग्रेस ने कुछ नहीं सीखा। कांग्रेस ने जम्मू संभाग में साल 2002 में 15, 2008 में 13 और 2014 में पांच सीटें जीती थी।
यह भी बताया जाता है कि टिकटों के बंटवारे को लेकर जमीनी सतह पर रिपोर्ट तैयार नहीं की। आरएसपुरा-जम्मू दक्षिण, बाहू, जम्मू दक्षिण और छंब में टिकटों का बंटवारा सही तरीके से नहीं किया गया।
पदाधिकारियों की नियुक्ति का इंतजार
सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के पास पहले एक कार्यवाहक प्रधान थे और उसके बाद जल्दबाजी करते हुए तीन नए कार्यवाहक प्रधान बना दिए गए। इसमें भी कई वरिष्ठ नेताओं ने अपने आपको नजरअंदाज समझा। तारिक हमीद करा के प्रदेश प्रधान बनने के बाद अब नई प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों की नियुक्ति का इंतजार किया जा रहा है।
जम्मू के कांग्रेस नेता किसी न किसी तरह सरकार में प्रतिनिधित्व चाहते हैं। चूंकि विधान परिषद है नहीं, अधिकार भी सीमित हैं। कांग्रेस के लिए नेकां गठबंधन सरकार में अपना हिस्सा हासिल करना कठिन होता जा रहा है।
इसलिए जम्मू के नेताओं का मनोबल गिरता जा रहा है। जम्मू के कांग्रेस नेता यह भी चाहते हैं कि उनकी पार्टी कश्मीर पर केंद्रित न रहे। कश्मीर के नेता अपने बारे सोचें तो उनके लिए आगे की राह मुश्किल हो जाएगी।