नई दिल्ली। होलिका दहन आज 13 मार्च 2025 को रात 11:26 बजे से 12:30 बजे तक है, जो पूर्णिमा तिथि और प्रदोष काल में आता है। इस दौरान होलिका दहन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस बार विशेष योग भी बन रहा है, जो इस होली को और भी खास बनाता है।
होलिका दहन की अग्नि में डालें ये चीजें
- होलिका दहन में विभिन्न सामग्रियों का अर्पण करना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।
- नारियल अर्पित करने से समृद्धि और बाधाएं दूर होती हैं।
- गेहूं और जौ की बालियां डालने से घर में अन्न की वृद्धि होती है और सुख-शांति बनी रहती है।
- काले तिल डालने से शनि दोष और राहु-केतु के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
- गूलर की लकड़ी डालने से आर्थिक तंगी दूर होती है और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
- गोबर के उपले वातावरण को शुद्ध करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।
- लौंग और इलायची डालने से नकारात्मक शक्तियां समाप्त होती हैं।
- चंदन की लकड़ी रोगों से मुक्ति और मानसिक शांति देती है।
- कपूर, लौंग और पान का पत्ता स्वास्थ्य समस्याओं को कम करते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करते हैं।
- हवन सामग्री वैवाहिक जीवन में सुख और समझ बढ़ाती है। इन उपायों से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
बच्चों के सिर के ऊपर से होलिका की अग्नि सात बार क्यों घुमाई जाती है?
होलिका दहन के बाद उसकी अग्नि को बच्चों के सिर के ऊपर से सात बार घुमाने की परंपरा बुरी नजर, नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा के लिए की जाती है। यह परंपरा तंत्र-शास्त्र और ज्योतिषीय मान्यताओं पर आधारित है, जिसमें होलिका की अग्नि को शुद्धिकरण और सुरक्षा का प्रतीक माना गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण देखें तो होलिका की अग्नि में हवन सामग्री, गोबर के उपले और गूलर की माला जलती है, जिससे वातावरण शुद्ध होता है। इसे सिर के ऊपर से घुमाने से बच्चे बीमारियों से बचे रहते हैं और उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
होलिका दहन से जुड़ी कथा
होलिका दहन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन की महिमा को दर्शाने वाली कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कथा प्रह्लाद और होलिका की है।
प्रह्लाद और होलिका की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, असुर राज हिरण्यकश्यप को भगवान विष्णु से घोर द्वेष था। उसने कठोर तपस्या कर अमरत्व का वरदान प्राप्त करना चाहा, लेकिन उसे यह आशीर्वाद मिला कि वह न दिन में मरेगा, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न किसी मनुष्य के हाथों और न ही किसी शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह अहंकारी हो गया और स्वयं को ईश्वर मानने लगा।
लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। उसने अपने पिता की अधर्मयुक्त नीतियों को मानने से इनकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार वह बच गया।
आखिर में, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता ली, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। योजना के तहत होलिका, प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित बच गया।
इस घटना के बाद से ही होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई, जो यह संदेश देती है कि अधर्म और अहंकार का अंत निश्चित है, और सच्ची भक्ति एवं श्रद्धा की हमेशा विजय होती है।
होलिका दहन में क्यों चढ़ाई जाती है गोबर के उपलों (गुलरी) की माला?
होलिका दहन में गोबर के उपलों की माला, जिसे गुलरी की माला कहा जाता है, चढ़ाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। इसे शुद्धि, नकारात्मक ऊर्जा के नाश और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस माला को होलिका पर चढ़ाने से परिवार पर कोई संकट नहीं आता और बुरी शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं।
होलिका दहन का ज्योतिषीय महत्व
यह पर्व फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो ग्रह-नक्षत्रों को संतुलित करने के लिए शुभ मानी जाती है। इस दिन विशेष पूजा करने से शनि, राहु और केतु के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। मान्यता है कि इस दिन अग्नि में आहुति देने से वास्तु दोष दूर होते हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
क्यों की जाती है होलिका की परिक्रमा ?
होलिका दहन के समय लोग उसकी 7 बार परिक्रमा करते हैं और मौली (कच्चा सूत) बाँधते हैं। इससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
धार्मिक दृष्टि से होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन को नकारात्मक शक्तियों को खत्म करने और घर-परिवार में सुख-शांति लाने वाला पर्व माना जाता है। इस दिन अग्नि में आहुति देने से नकारात्मक ऊर्जाओं, बुरी नजर और बुरी शक्तियों का नाश होता है। कई स्थानों पर लोग रोग, शत्रु और भय से मुक्ति के लिए विशेष पूजा करते हैं।
दैवीय कृपा और सुख-समृद्धि
होलिका दहन से पहले की जाने वाली पूजा, मंत्रोच्चारण और आहुति से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन गेहूं, चने और नारियल की आहुति देने से संपन्नता और समृद्धि आती है। होलिका दहन की राख (भस्म) को तिलक के रूप में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और परिवार को बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
होलिका दहन कहां और किस दिशा में करें?
- होलिका दहन के लिए उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) या पूर्व दिशा सबसे शुभ मानी जाती है।
- यदि यह संभव न हो, तो होलिका दहन दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) को छोड़कर किसी भी दिशा में कर सकते हैं।
- पूजा के दौरान मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना शुभ माना जाता है।
- होलिका दहन खुले स्थान में करना चाहिए, ताकि दहन की अग्नि सुरक्षित रूप से जल सके।
- यदि संभव हो तो, पुराने होलिका दहन स्थल पर ही अग्नि प्रज्वलित करना शुभ माना जाता है।
- मंदिर या पवित्र स्थान के समीप होलिका दहन करने से अधिक सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।