नई दिल्ली। दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी व रिमांड आदेश को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई।
अरविंद केजरीवाल की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में जिरह के दौरान केजरीवाल की जमानत को लेकर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का जिक्र किया है। अदालत ने बुधवार को गिरफ्तारी पर निर्णय सुरक्षित रखा और केजरीवाल की जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए 29 जुलाई की तारीख तय की है।
… हम पाकिस्तान नहीं- सिंघवी
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “ट्रायल कोर्ट ने केजरीवाल को चार दिन पहले ही पीएमएलए के तहत नियमित जमानत दी है। हमें गर्व है कि हम पाकिस्तान नहीं हैं जहां तीन दिन पहले इमरान खान रिहा हुए, सबने अखबार में पढ़ा और उन्हें एक और मामले में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन, हमारे देश में ऐसा नहीं हो सकता।”
पढ़ें दोनों पक्षों की दलीलें-
सीबीआई मामले में गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर केजरीवाल की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सीबीआई के पास गिरफ्तार करने के लिए कोई सुबूत नहीं था। सीबीआई ने सिर्फ इस रूप में गिरफ्तारी की थी कि अगर केजरीवाल बाहर आते हैं तो यह एक अतिरिक्त गिरफ्तारी है। केजरीवाल के पक्ष में तीन रिलीज ऑर्डर हैं।
सिंघवी ने कहा कि जून में रिहाई और पुनः आत्मसमर्पण का कार्य ही ट्रिपल टेस्ट की पूर्ण संतुष्टि को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते उन्हें अनिश्चित काल के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा करना उचित समझा है।
सिंघवी ने तर्क दिया कि केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में नियमित जमानत मिल चुकी है, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। जिस पर अदालत पर निर्णय होगा। वहीं, केजरीवाल को शीर्ष अदालत से अंतरिम जमानत मिल चुकी है। ऐसे में सीबीआई की गिरफ्तारी इसी का परिणाम हैं।
सिंघवी ने कहा कि कुछ तारीखों को देखना जरूरी है। 17 अगस्त 2022 में हुई प्राथमिकी में केजरीवाल का नाम नहीं है। इसके बाद 14 मार्च 2023 को केजरीवाल को समन भेजा गया और मैं समन पर पेश हुआ। सीबीआई ने बीते 240 दिनों में मुझसे पूछताछ की जरूरत नहीं समझी।
सिंघवी ने कहा कि वर्ष 2024 में तीन महीने बीतने के बाद चुनाव आचार संहिता लागू होने पर 21 मार्च को ईडी ने केजरीवाल को गिरफ्तार किया। केजरीवाल न्यायिक हिरासत में थे और इसी बीच सीबीआई ने कस्टडी की मांग की।
सिंघवी ने कहा कि सामान्य ज्ञान के अनुसार इस परिस्थिति में केजरीवाल को गिरफ्तार करने की जरूरत नहीं थी। वह भी तब जब निचली अदालत ने 20 जून को केजरीवाल को नियमित जमानत दे दी। सीबीआई पूरे मामले में 26 जून को सक्रिय हुई। अचानक से केजरीवाल सीबीआई के लिए अहम हो गए और वह उनकी कस्टडी की मांग करती है।
सिंघवी ने कहा कि 12 जुलाई को केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से ईडी मामले में अंतरिम जमानत मिल गई। ऐसे में सीबीआई की गिरफ्तारी के कारण केजरीवाल वहीं पर हैं, जहां थे, क्योंकि जांच एजेंसियां किसी भी हथकंडे से केजरीवाल को सलाखों के पीछे रखना चाहती है।
सिंघवी ने तर्क दिया कि ऐसे में मेरा प्वाइंट यह है कि दो साल तक चुप बैठने वाली सीबीआई केजरीवाल को अदालत से राहत मिलने के बाद क्यों सक्रिय हुई।
सिंघवी ने कहा कि मेरा दूसरा प्वाइंट यह है कि आप स्वतंत्रता के सबसे व्यापक मौलिक अधिकार और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए केजरीवाल के साथ ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते।
सिंघवी ने कहा कि सीबीआई अनुच्छेद 21 के तहत प्रक्रिया का पूर्ण उल्लंघन कर रही है। केजरीवाल पहले से ही ईडी की हिरासत में हैं। न्यायिक हिरासत में होने पर लगभग दो साल बाद सीबीआई सीआरपीसी की धारा 41ए के संदर्भ में रिमांड पर केजरीवाल से पूछताछ करने के लिए आवेदन करती है।
सिंघवी ने कहा कि आखिरकार केजरीवाल आतंकवादी न होकर एक मुख्यमंत्री हैं। केजरीवाल को आवेदन की प्रति कभी नहीं मिलती और कोई नोटिस नहीं दिया गया है, केजरीवाल की बात नहीं सुनी गई।
कोर्ट: क्या सीबीआई में औपचारिक गिरफ्तारी नहीं होती?
सिंघवी ने जवाब दिया कि ट्रायल कोर्ट ने केजरीवाल को चार दिन पहले ही पीएमएलए के तहत नियमित जमानत दी है। हमें गर्व है कि हम वह देश नहीं हैं जहां तीन दिन पहले इमरान खान रिहा हुए, सबने अखबार में पढ़ा और उन्हें एक और मामले में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। हमारे देश में ऐसा नहीं हो सकता।
सिंघवी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट केवल एक ही कारण के आधार पर रिमांड की इजाजत देता है कि वह संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा है।
सिंघवी ने कहा कि अगर केजरीवाल पूछताछकर्ता से कहें कि तुम भाड़ में जाओ तो मैं जवाब नहीं दूंगा, क्या अदालत कह सकती है कि आपको गिरफ्तार कर लिया जाएगा? मैं अपनी बात समझाने के लिए एक अतिवादी प्रश्न पूछ रहा हूं। अनुच्छेद 22 क्या है? लोग भूल रहे हैं, फिर हम संवैधानिक अधिकारों के बारे में ये सब किस बात का व्याख्यान दे रहे हैं।
सिंघवी ने कहा कि केजरीवाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना के आदेश में बहुत दिलचस्प वाक्य है कि पूछताछ अपने आप में गिरफ्तारी का आधार नहीं हो सकती। यह एक उल्लेखनीय मामला है। ऐसा नहीं है कि आप आंखों पर पट्टी बांध लें और गिरफ्तारी होने दें।
सिंघवी ने कहा कि अंत में जांच एजेंसी की प्रार्थना है कि कृपया केजरीवाल को गिरफ्तार करने की अनुमति दें। यह कैसी प्रार्थना है? मैंने इस प्रकार का आवेदन कभी नहीं देखा है, जिसमें यह दिखाने का एक भी प्रयास नहीं किया गया कि आप किस धारा के तहत गिरफ्तारी करना चाहते हैं। कोई कारण भी नहीं बताया गया। उसी दिन, बिना मुझे सूचना दिए या मुझे सुने, इसकी अनुमति दे दी गई।
सिंघवी ने कहा कि जज का पूरा काम फिल्टर का होता है, लेकिन न तो कोई नोटिस, न कोई सुनवाई और वह आदेश पारित कर देता है।
सिंघवी ने कहा कि 25 जून को आवेदन दिया गया, उसी दिन आदेश पारित कर दिया गया और भगवान की थोड़ी सी दया के लिए धन्यवाद, केजरीवाल को अगले दिन आदेश मिल गया। सिंघवी ने कहा कि निचली अदालत कुछ इस तरह से काम कर रही है।
सिंघवी ने कहा कि मान लीजिए कि केजरीवाल कहते हैं कि 100 करोड़ का कोई सवाल ही नहीं है और इसके बारे में कुछ नहीं जानता। तो जांच एजेंसी तर्क देती है कि संतोषजनक जवाब नहीं और यह अपराध की संतुष्टि है।
सिंघवी ने कहा कि 12 घंटे या उससे कम समय में उन्हें गिरफ्तार करना कैसे जरूरी है? क्यों? कोई जवाब नहीं, जबकि आवेदन में कहा गया कि गिरफ्तारी की अनुमति दी जाए। जज को इसे फेंक देना चाहिए था क्योंकि यदि अदालत इसकी अनुमति देती है और कहती है कि जाओ और उसे गिरफ्तार करो, तो यह वैध हो जाएगा।
सिंघवी ने कहा कि केजरीवाल न्यायिक हिरासत में जेल में हैं तो जांच एजेंसी पूछताछ कर सकती है और उन्हें गिरफ्तार करने की जरूरत ही नहीं है। इसीलिए इसे अपनी सुरक्षा के तौर पर की गई गिरफ्तारी का नाम दिया गया है, ताकि केजरीवाल स्वतंत्र न हो सकें।
सिंघवी ने कहा कि सीबीआइ मामले में पांच अहम आरोपितों को जमानत मिल चुकी है, जबकि नौ आरोपितों को गिरफ्तार ही नहीं किया गया।
सीबीआई की तरफ से पेश हुए विशेष लोक अभियोजक डीपी सिंह ने सिंघवी द्वारा इंश्योरेंस एरेस्ट जैसे शब्द का प्रयोग करने का विरोध करते हुए कहा यह उचित नहीं है।
सीबीआई ने कहा कि जहां तक आरोपितों की बात है, उनके पास सभी विशेषाधिकार हैं और कानून जो के आधार पर जांच एजेंसी के पास आरोपित की तुलना में बहुत कम विशेषाधिकार है।
सीबीआई ने कहा कि जहां तक आरोपितों की बात है, उनके पास सभी विशेषाधिकार हैं और कानून जो के आधार पर जांच एजेंसी के पास आरोपित की तुलना में बहुत कम विशेषाधिकार है।
सीबीआई ने कहा कि जांच एजेंसी को यह तय करने का अधिकार है कि किस आरोपित को गिरफ्तार किया जाना है फिर वह सीएम ही क्यों न हो। शुरुआत में सीएम की भूमिका स्पष्ट नहीं थी क्योंकि यह सब आबकारी मंत्री के अधीन हुआ था। कुछ चीजें हमारे सामने आईं, लेकिन हमने उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया क्योंकि वह सीएम हैं।
डीपी सिंह ने कहा कि सीबीआई ने मंत्री को ही गिरफ्तार कर लिया और मंत्री को जमानत नहीं मिली है। इसे इस अदालत द्वारा दो बार खारिज कर दिया गया है और अब यह सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
डीपी सिंह ने कहा कि जिन पांच आरोपितों को जमानत मिली है वह सभी मनीष सिसोदिया, के. कविता और केजरीवाल के लिए काम कर रहे थे। डीपी सिंह ने कहा कि निचली कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई आवेदन दाखिल किए गए, लेकिन अब तक किसी भी अदालत ने यह नहीं कहा है कि हम अपने अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं।
डीपी सिंह ने कहा कि केजरीवाल लोक सेवक हैं और उनसे पूछताछ के लिए पीसी एक्ट में अनुमति की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि जनवरी में मामले में सरकारी गवाह बने मगुंटा रेड्डी ने बयान दिया और 23 अप्रैल में अनुमति मिली और इससे पहले हम कुछ नहीं कर सकते थे। सीबीआई में काम करने का एक तरीका है।
डीपी सिंह ने कहा कि एजेंसी ने सामग्री जुटाने में तीन महीने तक काम किया, ऐसा नहीं है कि एजेंसी ने कुछ नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने दस मई को उन्हें चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम राहत दी थी। ईडी मामले में उन्हें नियमित जमानत मिली और उसी दिन हमने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया। एजेंसी उसी दिन केजरीवाल को गिरफ्तार कर सकती थी।
डीपी सिंह ने कहा कि एजेंसी ने 13 जून को ही जेल में केजरीवाल से पूछताछ का विचार किया था। सहयोग नहीं करने पर केजरीवाल को गिरफ्तार किया जा सकता है। ऐसे में प्रक्रिया के तहत केजरीवाल से 25 जून को जेल में पूछताछ की गई।
डीपी सिंह ने कहा कि केजरीवाल न्यायिक हिरासत में थे और तय कानून के तहत पूछताछ के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता है। ऐसे में एजेंसी को आरोपित या उनके अधिवक्ता को कोई भी पूर्व नोटिस देने की जरूरत नहीं है। यह सिर्फ और सिर्फ जांच एजेंसी व अदालत के बीच की बात है।
डीपी सिंह ने कहा कि ईडी मामले में निमयित जमानत पर हाई कोर्ट का निर्णय 25 जून का है और इस निर्णय के आने के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया। अगर यह इंश्योरेंस अरेस्ट होता तो निर्णय से पहले गिरफ्तारी की गई होती। जांच एजेंसी इस पर निर्भर नहीं रहती कि क्या होगा और क्या नहीं होगा। अगर उन्हें अंतरिम जमानत मिल गई होती तो भी एजेंसी गिरफ्तारी करती।
डीपी सिंह ने कहा कि बचाव पक्ष ने कहा कि तीन रिहाई आदेश उनके पक्ष में हैं, लेकिन सच यह है कि एक रिहाई आदेश चुनाव प्रचार के लिए दिया गया था। एक तरह यह हमारी न्यायिक व्यवस्था की ताकत को दर्शाता है। यह भी दर्शाता है कि हम पाकिस्तान नहीं हैं, जैसा कि बचाव पक्ष की तरफ से जिरह पेश की गई।
अदालत ने कहा कि सही है कि पहली जमानत चुनाव प्रचार के लिए थी, लेकिन दूसरी और तीसरी मेरिट पर दी गई है। सिंह ने कहा कि दूसरी जमानत पर हाई कोर्ट ने विस्तृत कारणों को बताते हुए रोक लगा दी है।
अदालत ने कहा कि यह पीएमएलए का मामला नहीं है। बचाव पक्ष ने सीआरपीसी की धारा-41 व 41-ए का आधार दिया है, आप उसी पर जवाब दें।
सिंह ने जवाब दिया कि संदेह पीएमएलए की धारा-19 के बजाय सीआरपीसी में गिरफ्तारी के लिए माना जाता है।
सिंह ने अंतरिम जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर कहा कि शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के सवाल पर मामले को बड़ी पीठ को भेजा है।
डीपी सिंह ने तर्क दिया कि सीबीआई सिर्फ संदेह के आधार पर गिरफ्तारी कर सकती है। अदालत ने सवाल किया कि जिरह यह है कि सामग्री तो मार्च में भी उपलब्ध थी, ऐसे में आपने मार्च से जून तक इंतजार क्यों किया।
केजरीवाल की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता ने कहा कि नोटिस नहीं दिया गया और यह बताने की जरूरत थी कि आखिर केजरीवाल को क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है।
डीपी सिंह ने कहा कि हमारे पास पर्याप्त सामग्री थी, जिसके आधार पर गिरफ्तारी की जा सकती थी। सीआरपीसी पूछताछ के लिए गिरफ्तारी करने की अनुमति देती है।
अदालत ने कहा कि अंतरिम जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के तहत पीएमएलए की धारा-19 की शर्तें सीआरपीसी से ऊपर हैं।
डीपी सिंह ने कहा कि एजेंसी का अधिकारी केजरीवाल की गिरफ्तारी पर व्यक्तिपरक राय बनाने के साथ ही कारण बताता है। केजरीवाल को सुपरवाइजरी ऑफिस ले जाया जाता है और फिर निर्णय लिया गया कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए। सिंह और अदालत को केस डायरी दिखाते हुए कहा कि इसे ट्रायल कोर्ट को भी दिखाया गया था। डीपी सिंह ने कहा कि गिरफ्तारी का कारण निचली अदालत को बताया गया था।
डीपी सिंह ने कहा कि हमने केजरीवाल से पूछा कि क्या आप बैठक में थे और शराब व्यापार का निजीकरण करने का आइडिया किसका था। तो केजरीवाल का जवाब था कि यह उनका आइडिया नहीं था। वह सभी को ब्लेम करने को तैयार हैं, लेकिन खुद को नहीं। आखिर वह सीएम हैं।
डीपी सिंह ने कहा कि सवाल यह है कि कौन जांच को प्रभावित करने के साथ ही पटरी से उतार सकता है, तो वह केजरीवाल ही हैं। सीबीआई के पास इसके पर्याप्त साक्ष्य हैं और यह गिरफ्तारी करने का उचित समय था।
डीपी सिंह ने कहा कि गिरफ्तारी वैध है या नहीं यह पहले कौन जांच करेगा। एजेंसी का पहला टेस्ट कोर्ट के द्वारा होगा जब आरोपित को पेश किया जाएगा और एजेंसी ने टेस्ट को पास किया है।
डीपी सिंह ने कहा कि हमारा काम पुलिस जैसा नहीं है और सीबीआई का निर्णय अधिकारियों की टीम द्वारा लिया जाता है। निचली अदालत समय के प्रति सचेत है लेकिन अदालत का कहना है कि गिरफ्तारी की सामग्री और औचित्य मौजूद है। अदालत हिरासत में पूछताछ की अनुमति देती है। हमने न्यायिक जांच को पास किया है।
डीपी सिंह ने कहा कि गिरफ्तारी के लिए एजेंसी को सिर्फ अपनी राय बनानी है और यह अदालत देखेगी की राय ठीक थी या नहीं।
डीपी सिंह ने कहा कि जांच एजेंसी के प्रश्न स्वयं दोषारोपण करने वाले प्रश्न नहीं हैं। केजरीवाल कह सकते हैं कि वह जवाब नहीं देना चाहते, वह चुप्पी साध सकते हैं लेकिन उनके जवाब दस्तावेजी सुबूतों के विपरीत नहीं हो सकते। हमारे प्रश्न यह बताने के लिए हैं कि कोई साजिश थी या नहीं। आखिर और कितने कारण बताए जाएं और अदालत ने कारणों को मानते हुए ही इसे स्वीकार किया था।
डीपी सिंह ने कहा कि एजेंसी ने गिरफ्तार किया और इसका आधार बताया गया, इसी पर बचाव पक्ष ने रिमांड पर जिरह की थी।
डीपी सिंह ने कहा कि यहां पर दो तथ्य हैं, एक गैरकानूनी गिरफ्तारी की याचिका और दूसरी जमानत याचिका। एजेंसी ने बता दिया कि केजरीवाल को क्यों गिरफ्तार किया गया, लेकिन जमानत याचिका भी जरूरी है। अगर एजेंसी इस अदालत को आश्वस्त कर लिया है कि गिरफ्तारी अवैध नहीं थी, तभी हम जमानत पर जाएंगे। क्योंकि अगर गिरफ्तारी अवैध है तो उसे अपने आप जमानत मिल जाती है।
सीबीआई ने कहा कि केजरीवाल की जमानत याचिका पर पहले ट्रायल कोर्ट में बहस होनी चाहिए। ट्रायल कोर्ट में चार आरोप पत्र लंबित हैं और इसलिए यह उचित है कि जमानत पर पहले ट्रायल कोर्ट में बहस की जाए क्योंकि ट्रायल कोर्ट सभी तथ्यों से परिचित है।
पीठ ने सिंघवी से कहा कि सबसे पहले आपको इसे हल करने की जरूरत है, अगर आपकी गिरफ्तारी अवैध घोषित हो जाती है तो आपको रिहा कर दिया जाएगा। सिंघवी ने कहा कि जमानत पर बहस करने से इनकार करने पर आप बाध्य नहीं है।
सिंघवी ने कहा कि इससे देरी होगी और अदालत दोनों मामलों पर सुनवाई कर सकती है।
अदालत ने कहा कि इसमें एक और पूरा दिन लगेगा।
सिंघवी ने कहा कि अदालत दोनों मामलों पर अदालत आज निर्णय सुरक्षित रख सकती है क्योंकि यह एक व्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है।
सिंघवी ने कहा कि केजरीवाल को ईडी मामले में जमानत मिल चुकी है, तकनीकी तौर पर दोनों मामले एक नहीं है, लेकिन तथ्य एक हैं। सिंघवी ने तर्क दिया कि दोनों पक्षों को जमानत पर जिरह करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
सिंघवी ने तर्क दिया कि अगर यह अदालत तय करती है कि गिरफ्तारी अवैध थी तो जमानत पर जाने की जरूरत नहीं होगी और अगर गिरफ्तारी को वैध ठहराया जाता है तो अदालत जमानत पर निर्णय दे सकती है।
सिंघवी के तर्क का विरोध करते हुए SPP डीपी सिंह ने कहा कि निचली अदालत को जमानत पर सुनवाई इसलिए करनी चाहिए क्योंकि चार आरोप-पत्र दाखिल हो चुके हैं। केजरीवाल पहले ही गवाहों को प्रभावित करने के साथ ही जांच को पटरी से उतार चुके हैं।
बता दें कि पिछली सुनवाई पर न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि यह पहली बार नोटिस जारी करने के लिए आया है।