नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है।
इससे पहले सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद CJI चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक AMU के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में फैसला दिया। जबकि न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति का फैसला दिया।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार अलग-अलग फैसले हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोई भी धार्मिक समुदाय संस्थान की स्थापना कर सकता है, मगर धार्मिक समुदाय संस्था का प्रशासन नहीं देख सकता है।
CJI ने अनुच्छेद 30A का हवाला देकर पूछा सवाल
सीजेआई ने पूछा कि अनुच्छेद 30A के तहत किसी संस्थान को अल्पसंख्यक मानने के क्या मानदंड हैं? सीजेआई ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि संघ उस प्रारंभिक आपत्ति पर जोर नहीं दे रहा है कि सात न्यायाधीशों को रेफरेंस नहीं किया जा सकता है।
यह विवादित नहीं है कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को भेदभाव न करने का अधिकार देता है। सवाल यह है कि क्या उन्हें भेदभाव न करने के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी प्राप्त है।