लखीमपुर खीरी जिले में देवकली का देवेश्वर नाथ मंदिर आसपास के जिलों के लोगों की आस्था का केंद्र है। नागपंचमी के दिन काल सर्प योग के निदान के लिए देवकली का विशेष महत्व है। मान्यता है कि राजा जन्मेजय ने पुराण प्रसिद्ध सर्प यज्ञ यहीं पर किया था। सर्पाहुति के लिए बने कुंड में स्नान करने व कुंड की मिट्टी ले जाकर घर में रखने से सांपों के डसने व घरों में आने का भय नहीं रहता।
देवकली के आचार्य प्रमोद दीक्षित ने बताया कि राजा परीक्षित को मुनि के श्राप के कारण तक्षक नामक सर्प ने डस लिया था और उनकी मौत हो गई थी। परीक्षित के पुत्र जन्मेजय सर्प से नाराज हो गए। सर्प के वंश को समाप्त करने के लिए सर्प की आहुति के लिए यज्ञ कराया था। देवकली में सर्प यज्ञ करने के लिए यहां एक कुंड खोदवाया गया था। उसी में सांपों की आहुति दी गई थी। इससे विश्व के तमाम सर्प उसमें जलकर समाप्त हो गए।
अंतिम मंत्र तक्षक सर्प की आहुति के लिए किया। तक्षक सर्प ने अपनी रक्षा के लिए भगवान इंद्र से मदद मांगी और उनके सिंहासन से लिपट गया, जिससे इंद्र का सिंहासन भी यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तब इंद्र ने तक्षक सर्प व सिंहासन की रक्षा के लिए ब्राह्मण का वेश धरकर जन्मेजय से अंतिम आहुति वरदान में मांग ली। इससे तक्षक सर्प की जान बच गई।