सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी अब बिना अनुमति सोशल मीडिया समेत संचार के किसी भी माध्यम के जरिये अपनी बात नहीं कह सकेंगे। हालांकि यह नियम कलात्मक, साहित्यिक व वैज्ञानिक लेखों पर लागू नहीं होगा। अपर मुख्य सचिव नियुक्ति एवं कार्मिक देवेश चतुर्वेदी ने बृहस्पतिवार को इसका शासनादेश जारी किया है। दरअसल शासन के संज्ञान में आया है कि नियमावली में स्पष्ट आदेशों के बावजूद कुछ सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा मीडिया में वक्तव्य दिए जा रहे हैं, जिससे सरकार के समक्ष असहजता की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
शासनादेश के मुताबिक उप्र सरकारी कर्मचारियों की आचरण नियमावली के तहत समाचार पत्रों, रेडियो से संबंध रखने एवं सरकार की आलोचना आदि के संबंध में प्राविधान किए गये हैं। नियमों के मुताबिक सरकार की पूर्व अनुमति के बिना कोई सरकारी कर्मचारी किसी समाचार पत्र आदि का स्वामी नहीं बनेगा, उसका संचालन नहीं करेगा और संपादन कार्य या प्रबंधन में भाग नहीं लेगा। बिना अनुमति वह रेडियो प्रसारण में भाग नहीं लेगा। समाचार पत्र या पत्रिका को अपने लेख नहीं भेजेगा। गुमनाम अथवा अपने नाम अथवा किसी अन्य व्यक्ति के नाम से समाचार पत्र या पत्रिका को कोई पत्र नहीं लिखेगा।
किसी भी सार्वजनिक कथन में वह कोई ऐसी बात नहीं कहेगा जिसमें प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार, स्थानीय प्राधिकारी, वरिष्ठ अधिकारियों के निर्णय अथवा नीति की प्रतिकूल आलोचना हो। वह ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करेगा जिससे उप्र सरकार, केंद्र सरकार, विदेशी राज्य की सरकार या किसी अन्य राज्य की सरकार के आपसी संबंधों में उलझन पैदा हो। उन्होंने आदेशों की अवलेहना करने वालों के खिलाफ नियमों के तहत कार्रवाई करने की चेतावनी दी है।
इनसे बनानी होगी दूरी
प्रिंट मीडिया : समाचार पत्र, पत्रिकाएं
इलेक्ट्रानिक मीडिया : रेडियो, न्यूज चैनल आदि
सोशल मीडिया : फेसबुक, एक्स, व्हाट्सएप, इस्टाग्राम, टेलीग्राम आदि
डिजिटल मीडिया : समाचार पोर्टल आदि